पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/५६

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यंग्र । आ १४६ मैं अष्टश्वाष्टक द्रव्य । ३1० १८3७ मैं। स्तरिता पूजा । १८० ११८ मैं संग्राम विजय पूजा । हुँ अ० १४९ मैं लक्षकौटि होम । ३ व्रद्य?ध८धर्भ…अ॰ १५१ ये ब्रग्यन्तअशा' १५१ में 'इतर वणोंठे धर्म वर्णन । सब धमोंका श्रवण ' करना चाहिये । राजाओं पर प्रेम रसा।। चाहिये 1 ३ इसके अतिरक्ति अहिंसा, साथ इत्यादि अर्श सार्व वणिक हैं । दत्यारों का बघ काना बांडालों का काम है । स्रियों पर उपमीभिफा करना ओरउनरु। 'रक्षण कत्रज्ञाथहबैदेद्विर्काकाकाभ है । अभ सारण्य , का काम सूवकारै। व्याख्या कामकरनापुरुक्लाका ' काम है । राजाकी र्मशायर्ता गानाअयवा स्मृति शस्य ३ भाटों ( मागधी ) फाफर्तव्य है । रंभावतरण औंर शिल्पपर जीवन करना यह संनरासों का काम है । माँवकै बाहर रहना ओर मृनकौकै वस्त्र धारण हूँ करना यहु र्चाडाल का काम है । बांडाल- डारुपृश्य हैं । हँ कटमै पड़ेगुर गो, ज्जगह्मण, लो, बालकोंके ड्डू लिये जो अपनी देह तथा सर्वस अर्पण फस्ता है दृ वह न्न याशषर्गोसे श्रेष्ट समझा जस्ताहैं ओर 1 उसकी सिद्धि प्राप्त होती है । गृहस्थ तृमि…अ० १धु२ में गृदृस्यवृत्ति । यद्यपि व्रणाणोंकों आजीवन अपनी वृति र्थार धर्म कभी । नहीं छोडना चाहिये तथापि आपनि फारूमें । क्षत्रिय, गो, अथवा शूद्र वृत्तिका भी आश्रय । करना धर्म से असंगत नहीं है । इसके अतिरिक्त मृ अन्य वाह्य पृसिंका आश्रय नहीं लेना चाहिये । आपति कालमे कृमि, वाणिज्य, गोरक्षा, ओर 3 प्याज पहा ब्राह्युर्णा की वृसिका साधा हो सकता ५ है, किन्तु गोरख, गुड, मिथक, लाख और माँस ५ नहीं बेचना चाहिये । भूमि खोदने ओषधि तोड़ने ' और पिपीलिकादिकौका नाश करनेसे जो पाप होते हैं उनका नाश यागादिक करनेसे हो जाता ३ है । परन्तु इस महका फल किसानों को ममनानकी । पूजासे दी प्राप्त होता है । आठ वैसोसे एक हस जीतना उत्तम, ६ से मम्मम, ४ से अधम और दो से अधमाधम कहा गया है । इन फिसानोंकौ कमसे । धार्मिक, जीनितार्यों, मृर्शस र्थार धर्मधातफ कहा ५ गया है । अव १५1३३' ब्रहाचयर्रग्रमधर्म । अ० १५1५ मैं विवाह । बिवाहकै समय क्षत्रिय म्ररेंकों बाण, वैश्य क्षीणे चाबुक और यह खोने हाथमै कपडा पकड़ना चाहिये । अषत्यबिकय का कोई भी धश्याक्षित्त नहीं है । "नाटे भुते प्रब्रबिते" यह पाराशरस्मृदिका औक यहीं भीदियादुआहँ 1अ० १५१ में आचार । ३1० १५६मैं द्रव्य शुद्धि ।

अन्न १४७र्म प्रेरक संभव है अर्शन्ति निर्णय; अल १धु८में गर्मकव का अय विरल । इस अन्धकार का कथन है कि अतल संचयन लिये यत्ज९ थे दिनअबकभसे लेने चाहिए । परन्तु पराशर माय यती दिन माने गये हैं, और ऐस: मस है कि अडिथसंचय गोम साथ करना चाहिये: ४के यय-तीर उल्लेख बिच उतिर लेश ही किया है । अ० १४९ है संक- सादिर्श१च निर्णय है अल १६० मैं वान-धम वचन : अल १६१ मैं यतिधमें । अ० १६र मैं यहाँ शव कथन : अ० १६३ में आव यम वर्णन है अ० १६४ में नवग्रह होम नानाधिध वर्णन,'लिन की अयष्टि जाल---. (वल-रोप मुकानेद" बलात्कार से उम" रबी अथवा शत हस्तगत की न्यामना नही चाहिये है यह अबल है दूब हो जानी है 1 बके मनसे योगकी व्याख्या "मन और औद्रिय का संयोग ही है, ( विजयेन्तिय संयोगे काजिद्यार्ण वंदडिड ) । पम, अधिकार इस मनसे बिलकुल सम्मन नहीं है । अलबम जबतक। अंधि गर्म रहे तभी तक यह अम है । ( का हो जाम तो बाद वह को शुद्ध होती र । ( शुमादम्८९न् नागी यय-नां न बजने ) अय १६ई म बर) धमकी कथन अथ १६७ है ग्रह यश अब" कोटि होम । अव १६द्ध [ १७४ मैं महापा-काहि कथन और प्रायटिल । र व.) से २०८ अध्याय. अतिका पंत वासन है । अय . में जत यरिभमम : अ: ।की मैं प्रतीप-, अभिजात । अ० हैम में वित्शियत अ० १७द्र में तृलिययन । अ० १जा में चलते । अध १८० में पंचमी अत । अय १८१ मैं पाल है अख १द्रर मैं खाने अत । अ० १८दा१८४ में अष्ट- यल । अ० स्था में नव-जित 1 अ० (व में दशमी-, । अव १८७म्य एकाद-त : १८८र्म द्वादशी-त हूँ अ: १ष्ट में आवण यथ-त : अ० १९० में अमल द्वापकीत्रत है अव १ह१ म क्योंदणी अत । लर मैं चल धत । अज १९३में शिब- रजिया है आह १ठ४ में अशोक पुषिमावत 1 अ० १९४ मैं बावन । अ० १ष्ट६ में नक्ष-त-लद-को म मानकर पूना करना चब: : अक्ष १९प मैंदिवधयत। अ० १९८ मैं मासि-, । अथ लम में अने-वाश । अ० २०० में पांपद१न व्रत । इसकी तुलना: जिये ऐसी अत-संवा-भी कथय का संक, पाठन को वाले" इत्यादि भाषिक अधिन मिलेगा । १ रस अयन 'बर नहाकर