पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/५९

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इसमे गिरिदुर्ग महत्व का है,क्योकि यह अभेद होना चाहिये। शेश दुर्ग शत्रु भेद सकते है और जित भी सकते है। ( सर्वोत्तम सैलदुर्गमभेद्यचान्यभेदनम )उपर्युक्त प्रदेश मे शहर बाजार तथा मन्दिर आदी बनानेकि व्यवस्था करनी चाहीये। स २२३-२२४ मे राजधर्म। महसुल और कामकाज की व्यावस्था ठिक रखने के लिये राजा को अधिकारिपन नियत करने चाहिये। गाव का एक मुख्याधिकारी होना चाहिये। उसपर इस गाव के अधिकारी को देख भाल के लिये रखना चाहिये। दश ग्रामाधिकारी पर सौ ग्राम के अधिकारी को प्रभुत्व देना चाहिये। इसके बाद प्रान्ताधिकारीयो की योजना करनी चाहिये। उनके वेतन उनके कामके अनुसार होने चाहिये। अधिकारी वर्ग की व्यवस्था ठीक ठीक चल रही है अथवा नही,यह समाचार गुप्तचरोके द्वारा राजाको मिलता रहना चाहिये। ग्रामका अर्थ देहात समझना चाहिये। गावके झगडोकी व्यवस्था ग्रामाधिकारिको करनी चाहिये। यदि तय न हो तो द्शाग्रामाधिकारिको करनी चाहिये। इसी तरह राजा तक पहुचकी व्यवस्था होनी चाहिये। इस व्यवस्था का मुलतत्व देश की सुरक्षता है। सुरक्षता ही राजाकी आर्थिक सम्पत्ति है।और आर्थिक सम्पति से हि प्रजा मे अपने पुरुशार्थ और भय का सन्चार होता है। राश्त्र को कश्ठ पहुचानेवाला राजा नरकमे जाता है। व्यावस्था-राजाको आयके प्रमाणसे छ्ठवा हिस्सा लेना चाहिये।सम्पुर्ण वसुली केवल इतनी ही होनी चाहिये। अर्थात उन्चे और निचे का भेद इसमे न होना चाहिये। कर शास्त्रानुसार लगाना चाहिये। कर अथवा वसुल हुए द्रव्य को दो भागोमे राजाको बान्टने चाहिये। एक भाग कोश मे रखना चाहिये। शेश भाग ब्राम्हन को देना चाहिये। ब्राम्हन को उस द्रव्य मे से क्रम से ४,८,और १६वा भाग योग्यता, अयोग्यता के अनुसार ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य को बाट देना चाहिये। असत्य बोलनेवालेसे राजाकी उसके द्रव्यका आठ्वा हिस्सा द्न्ड स्वरुप मे लेना चाहिये। लावारिस का धन राजाको अपने पास तीन वर्श अमानत मे रखना चाहिये। तीन वर्श मे यदि उस धन का वारिस मिल जाये तो उसकि पुछ्ताछ कर उसको लौटा देना चाहिये। वारिस का निर्णय उसके रुप और सन्ख्यासे करना चाहिये। तीन वर्श के बाद लावारीश धन राजाको कोश मे जमा करना चाहीये। नाबालिग वारिसका धन राजाको अपने पास वारिस के बालिग होने तक रखना चाहिये। बालिग कि व्याख्या बाल्यावस्था बीतनेके बादकी अवस्था है। जिसप्रकार राजाको नाबालिग का धन रक्षण करने का अधिकार है उसी प्रकार बालपुत्र ( जिसका पुत्र छोटा हो ) निश्कुला,अनाथ,पवित्रता, विधवा, (आतुरा),बीमार और जीवती (१) इन स्त्रियोका भी रक्षन करना चाहिये। उनके उपजिविका की जबाबद्देही भी राजापर ही है। उपर्युक्त प्रकार की स्त्रियोकी जिदगी खराब करने वाले बाधवोको राजासे द्ण्ड मिलना चाहिये। यह द्ण्ड चोर के समान होना चाहिये। जेल के अधिकारियोका रोजाने का खर्च चोर से बरामद हुए द्रव्यसे चलाना चाहिये। यदि चोरी न हुई हो और जो झुठही'चोरी हुई है' ऐसा कहे तो निसार्य्य नामक दण्ड देना चाहिये। घरमे मिला हुआ द्रव्य मालिक यदि राजाको दे तो वह राजाका ही होता है। स्वराश्ट्र के व्यापार पराई कर होना चाहिये। परराश्ट के व्यापार पर लाभ हानि के अनुसार कर लगाना चाहिये। व्यापारी को जितना लाभ हो उस पर भी कर लेना ही चाहिये। यदि व्यापारी उसे न दे तो वह दण्ड योग्य है। नौकरी करनेवालोपर जो कर लगाना चाहिये उसका उल्लेख ठीक ठीक नही पाया जाता। इसी लिए ठीक ठीक कुछ भी निर्णय नही किया जा सकता। स्त्रियो और सन्यासियो पर नौका व्यवहार के लिए कर नही लगता। यदि नौका केवटो की असावधानी से नश्ट हो जाए तो उसकि हानि राजा का केवट से वसुल करनी चाहिये। इन सब बातोसे यह स्पश्ट है कि आज कल की ही तरह ठेकोके नीलाभ का सर्व