पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/६

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पूर्ति करने का प्रबंध किया गया है । इसके साथ २ यह भी उध्योग किया गया है कि वैज्ञानिक शब्दावली समस्त भारत के लिये एक रुपमें स्थिर हो जाय । विलायती विज्ञानों के विशेष शब्दों के लिये भारतीय भाषाओं में नवीन शब्द गढ़ने पड़ते हैं । वे बहुधा संस्कृत शब्दावली ही से लिये जाते हैं; परन्तु संस्कृत में समानार्थक शब्द अनेक होते हैं । उनमे से अब भिन्न २ भाषाओं में भिन्न २ शब्द चुन लिये जाते हैं तब भ्रमोत्पादक गड़बड़ मच जातीहैँ । इस अवस्था में राष्ट्र्भाषा के कोश में किसी बिशेष शब्द का वैज्ञानिक अर्थ स्थिर कर देने से उसके सर्वग्राहा हो जाने की आशा है । इसमें संदेह नहीं कि कुछ न कुछ त्रुटियाँ अवश्य रह जायगीं, परन्तु त्रुटिहीन विश्वकोश कभी बन नहीं सकता । समय के हेरफेर से संसार में इतने परिवर्तन हुआ करते हैं कि जिसको हम कल अकाटय सिद्धान्त समझते थे आज उसकी हँसी उडाई जाती है इस सिये जो कुछ उसके विषय में कल लिखा गया यह आज मानने योग्य नहीं रह जाता । यही कारण है कि विश्वकोशों की काया पलट होती ही रहती है । ब्रिटिश विश्वकोश, जैसा पहले बतला आये हैं; अपनी काया चौदाह बार बदल चुका - इस प्रकार औसत जीवन काल केघन्न १२ वर्ष ही पड़ता है । मराठी ज्ञानकोश को ममाप्त किये अभी केवल पाँच वर्ष हुए हैं परन्तु उसका क्रोड़पन्न ग्रन्थ पूर्ण होते ही यनने लगा था । कदाचित् यह स्थिति निराशाजनक समझी जावे, परन्तु इन परिवर्तनों और नवीन संस्करणों से लाभ भी अगणित हैं ।

हिन्दी ज्ञानकोश की रचना के लिये सैकडों लेखक नियुक्त किये गये हैं जो अपने २ विषयके विशेषज्ञ समझे जाते हैं । इनके लेखों के सम्पादन करनेके लिये ३३ धुरन्धर विद्वानों की समिति नियुक्त की गई है जिनका काम बडा ही कठिन है । उनको केवल यही नहीं देखना पडेगा कि किसी लेख में कोई अनर्गल बात तो नहीं घुस गई वरन् यह भी विचार करना होगा कि उसका विस्तार उसके महत्व के अनुसार है अथवा नहीं और यह ग्रन्थ के परिमित स्थान में समा सकता है या नहीं । यदि ये बातें अनुकूल न हुई तो पुन: शोघन में कितना कष्ट उठाना पडेगा यह पाठकवृंद मन ही मन अनुमान कर सकते हैं । सम्पादक समिति के अतिरिक्त बारह विद्वानों की अलग समिति बनाई गई है जो लेखोंके स्वीकृत होने के पूर्व उनकी विशेष रूपसे जांच करेगी ताकि जहाँ तक हो सकता ह कोई दूपणा न रहने पावें ।

यदि इस कष्टसाध्य प्रयत्न को भारतीय जनता ने अपनाया और प्रकाशकों को उत्साहित किया तो आशा है कि हिन्दी विश्वकोश का केवल यही संस्करण न निकलेगा वरन् यथासमय अनेक संस्करण छपते रहेगें जिनमें प्रत्येक नवीन संस्करण के समय तक जिस पिषय की जितनी बुद्धि होचुकी है उसको ही पूर्ति न की जायगी किन्तु पिछले संस्करणों में जो भूलें प्रविष्ट हो गई हो उन सबका परिशोधन कर दिया जाया करेगा । यहाँ पर यह बतला देना भी अनीष्ट जान पड़ता है तो विवादग्रस्त है तो किसी प्रफार का साम्प्रदायिक आक्षेप नहीं रहेगा । यदि कोई बिषय विवादग्रस्त हैं तो पक्ष विपक्ष का कथन विन्यास कर वहीं पर छोड़ दिया जायगा । यह पाठक पर निर्भर रहेगा कि वह जो चाहे जिस पक्षको अक्रीकार या समर्थन करे ।

किसी भी नवीन कार्य के आरम्भ में सभी जानते हैं अनेक आपत्तियाँ आ खडी होती हैं । वैसा ही इस कार्य के आरम्भ में हुआ, परन्तु उन सबको झेलकर छाय सिलसिला ठीक जमा दिया गया है । प्रकाशकों का विश्वास है कि काम चल उठा है और शीघ्र ही पूरा कर दिया जायगा । जो सज्जन इस प्रथम संस्करण की त्रुटियाँ या दूषण और उसे अधिक उपयोगी बनानेके उपाय बतलाने की कृपा करेंगे उन सब पर यथोचित ध्यान देकर अगले संस्करण को अधिक चित्ताकर्षक और उपयोगी बनानेमें कसर न की जायगी ।

कटनी

२-५-३४

हीरालाल (रायबहादुर, दाक्टर)

एम० ए० डी० लिट्