पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/६८

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अग्निपुराण ज्ञानकोश (अ) ५७ अग्निपुराण युक्त हैं। मिश्रित पंख निषिद्ध हैं। क्षत्रकी दंडी | १२ अंगुलकी अधम समझी जाती है। तलवार ३ से ८ वर्ष पुराने भद्रासन वृक्षकी होनी चाहिये। का अग्रभाग कमल के समान होना चाहिये। धार वह ५० अंगुल ऊँचा और उसका घेरा तीन हाथ तीव्र होनी चाहिये । काबेरके पत्तेके समान हो तो होना चाहिये। उसपर स्थान स्थान पर सोने अति उत्तम है। इसका रङ्ग घीके समान होना का काम उसकी सुन्दरता की वृद्धि करता है। चाहिये । इसकी कांति बिजलीके समान चकाचौंध - धनुष-तीन द्रव्यों का होना चाहिये-धातु, करनेवाली होनी चाहिये। काक और उलूक सींग या लकड़ी। उसी प्रकार धनुषकी प्रत्यञ्चा के सदृश इसमें चमक होनी चाहिये। अपना के लिये तीन द्रव्य शास्त्रोक्त हैं-वंश, भंगा मुख इसमें नहीं देखना चाहिये। और न इसका (अवाड़ी या तागा), त्वचा ( ताँत )। लकड़ीका मूल्य ही किसीसे कहना चाहिये। धनुष चार हाथ लम्बा होना चाहिये। दूसरे रत्नपरीक्षा-अ० २४६ । वज्र, मरकत रत्न, द्रव्योंका भी कम अधिक प्रमाण दिया है। मुष्टि | पद्मराग, मौक्तिक इन्द्रनील, महानोल, वैदुर्य, ग्राह, (मुठीमें पकड़ने लायक ) खल्पकोटी. गंधशस्य, चन्द्रकांत, सूर्यकांत, स्फटिक, पुलक, त्वचाभंग, लोहमय आदि उसके भेद हैं। धनुष कर्कतन, पुष्पराग, ज्योतिरस, राजपट्ट, सौगांधिक, का आकार स्त्रीकी भृकुटीके समान होना चाहिये। गज, शंख, गोमेद, रुधिराक्ष, भल्लातक धूली, सींगके धनुषमें चांदीके बिन्दु होने चाहिये। मरकत. तुत्थक, सीस. पीलु प्रवाल, गिरीवज्र, कुटिल, स्फुटित, और छिद्रयुक्त धनुष दोषयुक्त भुजंगमणि व्रजमणि टिट्टिम, पिंड, भ्रामर, उत्पल, माना गया है। | इत्यादि इनके मुख्य भेद दिये हैं। इस प्रकरणको धातुमय धनुप-यह सोना, चाँदी, ताँबा, विचार शुक्र नीतिमै भी किया है, और उसकी लोहा इत्यादि किसी भी धातुका होना चाहिये। परीक्षा जरा विस्तृत रूपसे दी है। अ० २४७ में शृङ्गमय धनुष-यह भैसे, शारभ, अथवा रोहीके स, शारभ, अथवा राहाके वास्तुलक्षण । वास्तुमें विशिष्ट देवताओंकी सीगोंसे बनाना चाहिये। काष्ठमय धनुष-यह स्थापना । अ० २४८ में पुष्पादि पूजाफल । . चन्दन, वेत, छाल इत्यादिसे तय्यार करना धनुर्वेद-अ० २४६ धनुवैद। रथ, हाथी घोड़े चाहिये, किन्तु सबसे उत्तम धनुष बाँसका ही और पैदल चार प्रकारके योद्धा होते हैं। योद्धाहोता है । बाँस को शरद ऋतुमें लाना चाहिये। श्रोकी क्रिया-पद्धति पांच प्रकारको है-यन्त्रमुक्त, तीर भी बाँसका ही होना चाहिये। उसके अग्र- पाणिमुक्त, मुक्तसंधारित, अमुक्त और बाहुयुद्ध भागमें सोने, चाँदी अथवा लोहेका नोकीला फल (नियुद्ध ) । शस्त्र और अस्त्र-ये युद्धके दो साधन लगा होना चाहिये। है। युद्ध दो प्रकारके हैं-विश्वसनीय और ___'नन्दक' खग-इसकी उत्पत्तिकी कथासे ही कपटयड । इसका नाम रखा गया है। मेरु पर्वत पर जिस यंत्रमुक्त-बाण तथा छोड़ने वाले अस्त्रोका समय ब्रह्मा यज्ञ कर रहे थे, उस समय लौह दैत्य प्रयोग इत्यादि करना । पाणिमुक्त-पत्थर, तोमर ने वहाँ पहुँचकर उपद्रव मचाना आरम्भ किया। इत्यादि हाथसे फेंकना है। मुक्तसंधारित-अस्त्र, जब ब्रह्माने अग्निकी स्तुति की, तब अग्निसे शस्त्र द्वारा शत्रुकृत प्रहागैसे अपनेको बचाना एक खगधारी पुरुष उत्पन्न हुआ। उसने अपनी तथा उनके छोड़े हुए अस्त्रोको पकड़ना। ढाल तलवारसे ही उस राक्षसका वध किया. जिससे इत्यादिका भी इसमें वर्णन है। सबका असाम छानन्द हुश्रा। इसास उस तल- अमुक्त-तलवार इत्यादि फेक कर प्रहार वारका नाम 'नन्दक' पड़ा। अन्तमें नन्दकखग करनेको अमुक्त कहते हैं। नियुद्ध-शस्त्रोंके भगवानने ले लिया। खगके कई भेद दिये हैं। बिना ही युद्ध करनेको नियुद्ध कहते हैं। खटीखट्टर-कदाचित् जिस गाँवमें वनता था धनुयुद्ध उत्तम, प्रास मध्यम और खड्ग उसीके नामके आधार पर यह नाम पड़ा है। यह निकृष्ट युद्ध है। धनुर्वेद सिखाने वाला मुख्य गुरु देखनेमें सुन्दर होता था । वार्षिक-(कायाच्छिद) ब्राह्मण, तत्पश्चात् क्षत्रिय, अन्तमें शूद्र, होना शरीरके छेदने योग्य । सूर्पारक-यह बड़ा मज- चाहिये । शूद्रका मुख्य अधिकार युद्ध करने का है। बूत होता है। वंग -(तीक्ष्णच्छेद) गहरा घाव करने | सेनामें अपने ही देशके लोगोंको भरती करना में समर्थ होता है। (दीर्घः समधुरः शब्दो यस्य चाहिये । ये वचन ध्यान रखने योग्य हैं। खङ्गस्य सः उत्तमः तलवार लम्बी और झंकारयुक्त । सैनिक शिक्षा-पद्धति—(कवायद ) समपदस्थानहोनी चाहिये। ५०अंगुल उत्तम। २५अंगुलकीमध्यम, पैरके अँगूठे, घुटने और हाथकी अंगुलियोको