पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/७७

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अप्रिय

ओमज्य-दृसमैं सोम पहली मिस प्रकार ज्ञानी चाहिये इसका वर्णन है । अतिओटि-स्तके प्रधान देयता विष्णु हैं । ज्यव्रबिटि-द्रसमै अभि, सोम और विपक्ष प्रधान वैधता होसे हैं । प्राटादृकाएछमष्यदृदृस्था सायंकाल तीन दिन तक पूदृत्का होम होता है । प्रर्वओद्वासन-सखींक यजमान, धाटुंदु ' सगा अन्यान्य मृपृधिज उसर पेदी की ओर हैं 1 ब्रार्गमै स्वप्न पर जहाँ थे स्लो हैं वहाँ प्रस्तोता सायगायन 'हस्ता है । व्रग्निप्रणषष्ट-दृक्षये सधनीप हविसय्यन्धि । शाखाहरण की क्रिया की बीती है । हविर्धान मंडप-फूस नामके ब्रएडपकौ योजना की जाती है । एक एफबिसें चौडे चार भट्टे तयार । किए जाते हैं है इन्हीं की मट्टासे चबूतरा बनाकर उस पर सोभरसकै पात्र स्यापित किये जाते हैं । याट्टोर्में सोमरूता कृटनेका प्रत्रन्ध रहता है । अग्निधुपैथ मणाश-ट्समैं दो ८१११ बनाये

ज्ञानकोष ( अ ) ६७

जाते हैं३-( है ) माजमैलीय मण्डप दक्षिण ओर

ब्रजत्माजाताहै, ( २) सड़नायक मण्डप पश्चिम मृ है

मैं होता है । द्वार केवल पूर्व ओर पश्चिभकौ ओर दृ रहता है । । अग्निपोभषद्ययन-यक्मग्न ओर उसकी पढनी बैसर्त्तन होमके पथात् श्रमिकों उत्तर कुण्डमैं मिखा देते हैं और सीमाओं हनिहाँग मण्डपमें ले जाते हैं । यूपमैं पथ बाँया जाता है ओर गति मफरेंफी थी जाती है । मृत षगृकौ "नपा" निकाल कर उसका हरेन किया जाना है और पशु पुरी- डाश तव्यार क्रिया जस्ताहै । पक गगरीबै नबीका जा। खाया जाता हँचौर उसमें सीम भी इसी - जानी है । ५ पशु पुतेदाथ अंग माग अ१रअजयप्रा-स्वशुके बने '

द्भुएब्रन्नौफी यझ्वमे आहुतिदी जातीहै उसके

अवशिष्ट भागौको भोंजगकै व्यवहार्य लाते हैं ।

वक्षतीवरिंपरिहणदृ-व्रहाँ ज़ड्सको प्रधान ऋत्यिज दृ यज्ञ भण्डपमैं खाकर रखता है । दृषनीय य, वहीं ' दृत्यादि भी इसी मणापपै रखा जाता । इसी

मण्डपभे रात्रिकों शयन करना पड़ता है । किन्तु . यजमानकी पत्नी प्रश्चर्वशाम्पहूपमें और यजमान . हबिघनिब्रण्डपमे सोमरखायं जागता रह्या है । , सुस्याट्स शक्या व्यय दिक्स-भैंदृलेतो शध्वर्यु । अग्निमै ३३ दृविट्वेद्रोड़ता है । पधात्सवमीष पथ का अनुछान होता है । हनिर्दव्य 'गँध प्रकाररौ रै साभार किये जाते हैं ( १ ) धाना ( सत् ) ( र ) अम्म ( दूध ओर सचुण मिश्रण ) स्व) परिवाद


अग्यारी

( साई ) ( ४ ) मुरोडाहूँ। ) पयस्वा ( दैना

कीमा पृचार-क्षत्पधात् दहीका हवन होता है । र्भछपृणग्द-स्समैं सोप्ररसफा हवन होना है और न्त्यिज्ज सामगान फरसे हैं । सयनीय पशु-शा शादी मसि ही जा युफती है तो उसके क्योंकी पकाया जाता है और उसी की आहुति ही जाती है और सोमरस चढाया जाता है । शुडाभर्मिकपृचम्न-दृससै सोम रक्षण दृषा होता है । बने हुए सौमरसकौ पान करते हैं शक्य प्रायश्चित होता हैं ओर शत्यिमोकै चले जाने पर यह किया समाप्त की जाती है । मपष्णद्रिनव्रब्रभ-प्रात: सब्रवीयजे ही समान यह भी होता है, केधख आया भेद है । पिनुदृहोंत्रचंसमैं निभुट नामका होम होंताहै । १त्रनीय पुरोडाश याग किया जावा है दाणिणान्य का होम भी इसकी मुख्य क्रिया है । तदनन्तर दक्षिणा दौ जाती है, प्रधानको मुब्रर्ण दिया जाता । ऋबिजौरों नार चर्म रहते है । प्रथम वर्गकौ है २ गो, हिवीपको ६, तृतोयओ ४ और चतुर्यकों ३ दी जाटों है 1 तदनन्तर तैश्चफर्यशू होंडा है । तृतीय सवनं-दसवें’ आति गृहमैं याग र्दाता है । यजमान ओर उसकी पानी "पूत्मृत" ( सीम रसका प्याला ) में त्हाँ मिलाकर विल या।। धारम्म करते हैं । इस दिशायें खषओफ यजमान तथा ऋन्तिज लोग माँस खासे हैं । पिंठरौकौ पिण्डदान दिया जाता है । । 'जास' भात सोमदेव को हधजमैं अर्पण फरसे हैं । षापौसंपन्न-रस नामका अनुडात्रक्ति। जाता है । इसमें 'आवृत' स्नान फिपाब्रस्ताहै। यशमान्, उसकी पत्मि. तथा अम्बाहूँ बाहर आते है । ब्रदो के किनारे जाकर स्वान करते हैं । मार्ग भर साम- गान होता है । स्थानान्तर नये वस्र पहनकर थे खोट आते हैं और उद्रययेष्टि करते हैं । बाँझ गायका पाग कस्ते हैं 1 यह अनुमान्य भाग रूह. ताता है । फतिमें यह षाजित होनेसे "ग्रामिद्वामृ नामक पदार्थका इसलिये प्रयोग क्रिया जाता है । तदनन्तर हौर हन्याबि कृत्य होता है । उद्दव होम होता है । अन्तमैं अन्ति समारोप करके पृणरैटुति दी जाती है : अग्निटोभ प्रधान यब माना गया है, और भी पहुतहैगेयर्दोंर्मे बहीं सव किया भी जमुन अन्तर 1

आग्रारौ-पायंरेपयोंका मन्दिर । पारसियों