पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/७९

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33३3३ . . … "क्यों" ( अ है ६९ णाज्ज हुदुजहुंट्ठेबैसदुहड्डूरुदृ एसह्रपै आशिर्वाद दिया ई दृ पृफ होनेसे गर्ग णेपृ गबन हाहूँहँहूँ तास ह बाहू षट्टूचफर गा दृ गाघर मृश्चिमै परस्पर विवाह संबध निषिद्ध । हैंड्डूकोंफिदुदब्बयरिदुफर सब लीथ स्थानौमैं भ्रमण । इनके गोत्रीके नाम निम्नसिपिंदृहैंच्चा १) गर्ग, मृ के र वापस आकर महालदा१हिकी । ( र ) गोक्ल,( ३ ) णदृदृरू, ( ) षाक्लिरू ( पृ ) मूडाआहँन्म हुँ । दुहुँरुक्षश्मीहुँहोंप्रसज होकर कालिख ( कंक्षरू ) ( ६ ) हँदृरू ( ७ ) यंम्भरू दृरदान या इन्द्र वश गा र्भाहतेरे ५ ( द्ध ) भइल ( ट ) क्लिरू (१०)ऐ१ण ( ११' वशज तेरे नाभसेहूँसिद्ध होकर धनधान्यसे गाँरे- रैणा ( ।२ ) हिक्स ( १३ ) तित्तल ( १४ दु पृर्णदीगे' रष्णफकैवाव्र तुम ओर तुम्हारी ष्ण क्तिड ( आयुक्त ( त्काटाक्ल ( १७) पन्निधुव नक्षप्रकै समीप रहोगे । देत्रीकै आश- - गोभिरा ( १७ ) गोरा। ( गधा। ) आधा । तुसार दुर्रे उसने र्फत्सापुर आकर ब्रहींघरकी । मणाक्लीनइबिदृम्ल क्या स्थितिणीत्रर्ता-पृर्व कम्याओंस विधाह किया । तदनन्तर हैंहलीद्र । कालमें तो थे वेइषाठीये पैठालिक्र संध्या भी अउकेरुहुंरह्रनै त्तगाओररकविस्तुत र१ज्यवखाया। ' फरतेदैयेओर सनातन धर्मावलम्बी थे 1 किन्तु न आगरा पसाया था जो उस समयअग्र- । जब न घमैंका भारतपै अधि ३ दृ ३ ' वतौकै अमले दिशानथा । कोखापुरसे आवेले । हृसकृस्सों तत्कालीन राजा कैटह्रपृनेङ्कचुदृत्रणु पश्नधात्दितीय नार यमुनाकै नटवर बहे समारोह ' ग्रहण कर सिया । आज तक भी पदुव्रसै अग्र- से इसने महालदगौका कूटा किया था र्थारु जहाँ । वाल जैन घर्मावलशी है है यर देवीने प्रकट हाकर रसे ब्रदुब्द चर दिये उसी । यों तो समय समय पर उनका उत्थान ओर स्थानका नाभू अप्रवतीपड़पृ र वही उसकी , पतन बराबर भी होतारहा, एँक्खिग्रहता ८८८ राजधत्नी दुइ । फुस बार दचीन प्रसन्न होकर । अत्रसेनकों युद्धमैं इसके धदृन्हीं पहुंचा । राजा इसकी कुलदेवी हाना स्वीकार किया और अश्या अग्रसेन और उनके मर्चाकौ युद्धयें मृन्यु होनेके ही कि उसके वंशज दीपायलीके दृपृन वडे प्राण । पभ्रात् इनके १८ लड़कौने अन्धी पुर्वी ( षाशुणद्र राहतें महालरिमीकी दुखा किया कर र्डमैंहैंमधीरै । पशुराज ) सहित भाग कर पब्रापके हिसार द्दसकाप्रसुंव्रग्रदृटा श्यामा। उत्त श्याम के पास पक नगर यसत्पा। उस समय कौतराद्दर्योंते लेकर पडाव तक इसौफा राज्य । इनकी स्थिति अच्छी न थी । विवाह प्तादम्भएँ था : पृवैशौरें दक्षिणमैंगंगानदी इसफेराज्यकौ भी कठिनाई होने लगी। अठ: अपने पिताके सीमा थी । पश्चिमप्रे मारवाड़ तक इसके ' मूज्यष्ठगुर्द पातखशीकौ आज्ञानुसार-भ' संवी- शासनमैं था । ५ , पुत्रपैस सम्मति रोका: अपने अपने गोशैकों बचा गोत्रदृदैहुँग्यम्स-द्दनकेंगझत्रोंकीउत्नपसिंपैभिशभिक्ष । ३६८ आपसहीमैं विवाह डालें ट्टाबै है इसका फ्लानायहैं। फुछाका तो कथन हैकिराजा अग्रसेन । परिणाम यह हुआ कि अन्य सूयर्वशौसे इनका

ने १८ यह किये । प्रत्येशथहोंसे ही इकौगोगौठे हुँ सरबग्य टुट गया और उस सभमफी प्रथकिं द्वाशहर्वायश फा रहेगे विरुद आपस ही मैं विवाह फस्नेसे उसकी

नामपड़े। जत्रवदृअ छि त्तयउनकां निहींप पगृगृतैको पसिके समय बडा ' रऊष्टम भी इनका पहररा ऐसा स्थान नहीं रह

दुख होने हणा और पिंन्नाव्रमृड्समापृ क्लिद्भुए गया । किन्तु अट्ठारहीं राजकुमार-ब भी बडे ही अपने वंशजोंत्वों बलि देवेश और प्यार्थ३की परिश्रम और त्तत्परत्तति अपना पूर्व ऐश्वर्य फिऱसे हत्याकरनेका भबिम्पपै निषेध किया। इनके १७ प्राप्त किया । सबसे बहै राजकुमार राज्या- रानियाँर्यों धौरएफउपपबि। उन्होंके वंशज भिपैफ कर अओहाकौआनी राजधानी बनाया अग्रवाल फदृरुणये । उन सद्विसत्रद्धृयर्तोंसे साढे ओर सुखपूर्वक सव राजकुमार दिन व्यतीत सप्रह गोत्र आवातोर्में आज तक भी विद्यमान करने लगे । पुणवैवफी पब्रधान् उनका हैं । किन्तु आका कयनहै कि इनके अठारह । पुत्र अनन्तमाख षादी पर । इसके फालर्में पुत्रोंके नामसे अथवा उनके गुरूधोंकें नामसेही व्रयोहाने नहीं उन्नति की । द्दनकेबुदृभूकै अन्य इनके गोत्रोंकै नाम पदे । सबसे छोटे राजफुपार लोगा भी घन धान्यखे परिपूर्ण थे । व्यापार ही का कोई ब्रह्मा गुरु नहीं मिला तो अपने गडे भाई इनका प्रधान त्यब्रसस्य था और खदमीकी विशेष के गुरू शाक्ति ही आना गुरु पना लिया। कृपा होनेसे णदमीपुत्र कहे जाते थे । धओहार्में जिसका फल पहहुआ कि इसका गोप "गवन फेशलदों लस्त तो इन्होंफी परुतीर्थरै। जिस अथधात्रगेषत्तआधा ही माना गया । अब भी _ साक्य ३२७ ई० ५८३३ सिकादरने भारत पा: