पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/८०

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अग्रब्रादृ। क्षनकोंश ( अ ) ७० अग्रवाल

आक्रमण किया था उस समय थे हाँग श्चिसे गई' ओ? उब, नीचका चिनार होने लगा । या डव्रटिलेशिब्रा-पर पहुँच बुके थे आ' नन्दत्राज भी प्तका मुख्य स्थान पश्चिमोनं है वीरु हभडा राजा था । सिल्लषवे इसीके समीप पैक्योंकौ एक शाख मानी जाती है । ये तैश खाइरैस ( आधुनिक सिरसा ) नामका एक क्या अथवा वेंदृणवधर्वफे माननेवाले होतेहैं । इनके मृसणा किन्तु अप्रोद्दाफे कारण उसकीफुछ भी । दो भुखा भेद हैं-( ९ ) मान्दश्दी ओ? (२) उन्नति न हीं ससी । तप उसने कूज-चीनिका ' देशी । इनमें समयके देश पैट्ससै अब विवाह प्रयोग कर नहाँके निवासिर्योंपै 'धार्मिक फूट फग- टू द्रन्याद्रि भी नहीं हींप्ता । अग्रवातौकै पूर्वज रत्नसेन फर क्या व्यापार युरिक्यालों ओर राजकुल बाली ' ओर गौफुहाजन्दकै ह्माद्रोदी होनेसे उनके वंशज मैं षरएपर विरोध कराकर आने नगाकौ धसाना ३ कलारी ( फुसारी ) कहलाते ये जो आजकल चाहा । उसे इसमें सफ्तात्तदृ भी प्राप्त हुई, ओर ट्वें कलचार और लोहियाके नामसे प्रसिध्द है । यद्यपि उसी समयसे तीन सौ वर्पपर्यन्त द्दसृका अध: . इनके वंशूभै काई दोष नहीं है नघापि सतियोंकै पतन होता न्द? ५ तदनन्तर र्ताहस्वाम्नकै उत्तम रै यल्लेशलका अपनी जानि: अन्य लंणोंकों भाँति ज्यदेशौसे एक यार फिर इन लोगौने उन्नति को । ३ स्थान नहीं है । इन र्तागौसे अन्य अग्रवाल गोटी

सं० ७८१ ई० के फाह्युन मासभे अर्थाहा- । वेटीशाक्षश्यदृध क्यों 'खते 1 इसी भाँति इनके निब्रस्वीसित्रानज्जद र्थाच्च धर्मसेनके क४नेले धाम- 1 हँपृमुम्पा ८८८८ छोर हैं…( है ) ओहो और ( २ ) मारके राजा समरजीटबै इसपर चढाई कर: ही । हस्ते ( दृश्ले ) । दृदृसौ ( दृशूएँशू। ) करे उल्पन्तिके भी । उसीके वाद इत्र धमाको संझटात्रसप्तमें बिम्भप्रै कहा जाना हैं कि इनके पूर्वज राजा-धि देम्नफरंसिम्लदृमैंणीमृमृहै स्मसैनं गीकुहृर्पिंन्दवै । पनुन सो उपपजिमाँ यों, जो समान कुल वोचं बद अयुलशसिभार्ता समाचार भेजकर ५9१२ । वानिकी नहीं थीं । उनसे जो सन्धान दुई वे कैवरु। १० मैं उससे रस नगा पर चढाई 'शादी है उसने 3 आधे ( अथरेंत्वीसौ पिरुये अग्रवाल न जिसे ) इस नगरके साथ ही सस्था सिरसाशे भी पीटकर ट्वें आम्पादृ थे है आ: थे दरुसे ( दर्शाया) हुए पस्वाद कर दिया । हजारों नारियाँअषने पतियों 1 और अन्य तो वीसौ विखे ( अभाँतूजिनके भाता के साथ सती हो गरै और भणी समय दृहाँरै । पिता दोनों ही अप्रचारु। थे ) थे ये पीसे कहलाये । निषासिर्योंकौ दृक्योंहा वं९जनेका आदेश किया । इन र्तार्गोंपै भी आपमात्खम्बय नहीं होता । यों ओर रत्रसेन ओर गोकुलचन्दके वंशनोंर्दा आप । हो दश तथा प्रान्तके अनुसार इनकी भी भापा दिया कि समश्र्वमैं शाका स्थान पट्ठा गिर जाये । पिं; निज है किल ज्यादातर थे लोग रूही बोली उसके पभाटपु त्स नगरकै वने द्वार रेश्वर्यकौ । र्वारूटे है भौरमोउब्राहाण इनके पुत्रतेहिज्ञ होते शाहगुदीनसोरीकौ भारत पर नड़ादैने ष्टिकृल ; हैं । अट्वेंसअद्विराफाव्यवदार वर्डिंत्तहँ। विवाह नाट कादिया ( १२ र्वीशतान्दी) । टाजसेफिर न्न्याहिमें बहुत व्यय रुरतेहँ। क्योंकी मृक्वयु ऱनडापृर्ष गौम्बक्यों शा नंहंरैद्भुडा" इन्हीं पर बासव प्तनातेहैं तथा दिरादरीमेंभीजदेते आकमणीके समय ये चारों और जैतगये' दद्रुदों हैं । यद्यपि आधुनिक शिज्ञाका प्रभाव ग्रन्थ नेभयसे जनेऊ इत्यादि र्ताड़ डाले। पानीपत, जानिब भाँति इनपर भी वहुत पाम है किन्तु अरसे, वैमाँमृ; देहली, मेरठ, अखागंड़मैं बहुत दृ मस्पयाडू आदिप्रार्माशीयणा जिनमें नवंरेंन सभ्यता से आफर गस गये । कुछ मारवाड़ उज्जैन ओर ३ नहीं मुसौ है उनका षहिनादा अंजाम सादा है । मन्नसोर तक वसै गये और यहीं पर रहने एने । ; एमडी होगा इनमें जाय भी बहुत् प्रजलिन है । बहुम पूरन ओरदपिम्लनमैं जाकर बसे । बाहर खियरैदृहैंत्वा। र्थाड़ना पहनती हैं । इनके आचार जाकर पमुधा ये लोग व्यापार: ही काते थे। दु व्यवहार सरल नश्वर उशवणोंफी माँनिहोंते हैं । अन्तमै देहली इत्यादिमैं बसे हुए अप्रवार्लोश । बिधना बित्राहकौप्रथा न्हीं है । व्यम्पारजेप्रपै बुत्रगुल दस्नारयें फिरसे बहुत सम्मान हुआ है घन डे इन्होंने अच्छा उन्नति की में । इनमें ग्रहों ब्रड़े ऐट धान्यसै परिपूर्ण होनेके अतिरिक्त राज्य न्रपारप्रे । अकार धनधान्यसे पूर्ण समृद्धिशाली व्यक्ति है। भी थे पदे मदे प्रतिष्टित पदों पर थे । टाडरमत्त , प्राय: देशके सही पृड्रे गृहे क्यारीमें थे व्यापारकै ओरमदृणाकानत्म अकारकेदस्पार में विशेष । हेतु पुए को यंस्म देशके प्रहूँस्क भाच्चापै थे णात्पफाण । हूँ प्रसिंदट्ठे । थे धदुघाहूँदार आर सरशधहति

आधुनिक अवस्था सधा आचार व्यवहार-बम के होते हैं ओरदाग धममै विशेष अद्धा होती हैं। गतिके क्षाथ शामै भी षटुत संत उपजातियाँ हो । भाणामें ब्रधिपद्दटानं: हरएक नगरोंपै इनको बनवाई