पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/८२

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ञप्रगोहा ग्यन्कोश(प्र) ७२ ञप्र्धरिया

व्यपार यहा होता हे और उसिक कयदा तय्यर जाता हे-पानीमे खदे होकर तीन बार इस्को किय जथ हे। इस्क मुक्य गाव और्सधि हे। पद्नेसे गुरु, पति, जननि, भगिनि, स्नुशा इस्मे हजरकि फोज्का एक बाग रह्त हे। इत्यदिसे गममन कर्नेके समन भि पाप नश्त ञप्रगोह-पकाबके जिला हिसार्कि तहसील इत्यदिसे गमन कर्नेके समान भि पाप नश्त फतेहाबाध्मे एक स्थान हे। प्रछीन काल्मे इस हो जाथ हे। गाव्का महत्व श्रव्स्य थ किन्थु श्रव तो यहा ञप्रधरिया -श्रिङरेसे निकलकर यह जति श्रिव् कुछ भि नहि हे। उ० श्र० २६१० और पु० दे० सम्पुर्न भ्रारत्वर्श मे पये जते हे। सम्पुर्न भरत मे ७५३। यह हिसरसे १३ मिल पर बयव्य दिशमे ५५५११ से श्रधिक श्रधरिय हे।उन्मे से श्रोध तो बसा हुआ हे। एसी क्रिबदान्ति हे कि श्रग्र्वाल केवल चरर और मद्य प्रन्तमो हि हे। बिअह्र और् बनियाकि उथ्पथि यहा ही से हुई हे और इस्से उदिसामो भि यह कफि पये जाते हे। सम्भलपुर, इस्का बहुथ कुछ महत्व भि हे। राय्दगद, विलापुर,छोत नाग्पुर मे इन्कि बर्ति पुग्ने किले और हिमर्थओक खयेदुर इसके पुर्व- विशेश हे। इन्कि एथिहशैक कथ से यह विदिथ कलिन महत्वके सक्शि हे। ११६४ ई मे जब होता हे कि पह्मलि ये श्रिगारेके समीप गह्नेवाले मुहमद गोरिन इस अनगर को जीत लेय थो गज्पुथोको चुन्सथ हे। इन्होने देहलि हके बाद्शाकह स्रह्रिङ्र्वलि जथि इसदर उसदर फ्य्ल गैइ। इस्कि के साम्ने कभि सिर न भुकय- एक ही हाथ्से जनसिक्या लाग्बग १३०० हे। सलाम कते थे। देह्लीके बध्शह्ने एक पद्यन्त्र् ञप्रध्म्र्श्रग-(१) मधुछन्दके कुलोथ्पकत्र एक श्रेशि रच्कर सब्को बध कर्नेका प्रयथ्न किया। सब (२)इसी नाम्के एक और श्रिशि हो गये हे। तो मारे गय किन्तु एक कुशलथादमे निकल बग (३) विसद्यप्वर्तके पास इसी नाम क एक तीर्थ और श्रप्ने बदल एक चामर को भेज दिया।

हे। यहा पर प्राचेत्सद्ने बहुत समय पर्यन्त तम श्रज तक भि पिथ्रोको तथरग कर्ते समै उस्को ये 

किया था। जल देते हे। एक एसैइ भि कथ हे कि सेनामे (४)सन्द्य कि एक विदि। इस सब्ध का श्थ्रि इसी जातिके तीन भैइ गज्पति रजके दर्बर्मे पाप्दाल हे। श्रवेध्के दस्बे मयेदल के १६० सुब्को भरति होनेके लीये गये। गजने तीन ग्यने उन्के यह नाम दिया गया हे वह नीचे दिया जाता हे। साम्ने रख दि और उन्मेसे एक एक उताने को श्रन्त च सत्या छमिदथ्पस्तओ द्यजयत। कह और जो कोयि जो ग्यन उतावेगा उसिके ततो रज्यायत तत समुध्रो श्रेव ॥१॥ श्रन्दर्कि बस्थुसे उस्का कर्या निधर्ग्ति किया जवेगा। समुद्रदेवा ददिसम्वस्रो श्रजयथ। एक्ने सोनेकि मोति वालि ग्यान उतैइ किन्ति उस्के श्रहोरात्रास्गि विदध्सोन्वस्थ्रो मिब्तोच्शी ॥२॥ अन्दर बवैल कहोफ्नेफि चबओओक निकली र्त उस्के सुर्याछन्द्रमसोव धथ तथा पुर्वम्कल्पयथ। लिये केथिवरिका कर्य निक्शित स्खित उस्के लिये दिन्बि च प्रतिवी चैत्रिक्स मथोस्व: ॥३॥ कहेतिबरिक कयर्या निक्शित किया गया। उस्के वम्श इस श्रद्मपर्न सुख्तमे पथ्र पपात न होना भी होनेसे ये लोग केतीकर्ने लगे कह्ते हे। कुछ लोगूका एक विशेशथ हे। इस सुख्त्के पात्के श्रनान्तर एसा भि व्योकी इन्की श्रिङ्सरित उन्होनो सहश हे। जल हात मे लेकर उस्मे ख्वास परिथ्यग कर्थे (russel and hira lal's tribe and coste हे और उसे प्रुथ्वि पर गिरा देथे हे। इस्का of central india) ञ्प्रगिप्राय यह हे कि शर्रेर मे जो पप पुरुश क इन्मे उस और नीछ दो श्रोरिग्य होते हे। नीच

वास हे उसे द्वास किया से हात मे पतफ कर श्रेरोवलोको पिता तो श्रधग्रिया कहोने यहेह हेम।
उस पाप-पुरुश क नाश कर दाल्ति हे।      इन्मे सात गोथ्रे वाले तो पत्मले कह्लाते हे १ 

यथश्रमेध: पकथुरात सर्वपापा पन्प्दन:। गोथु एस हे जो नायक कह्लात हे और ६ घोथ्रो तथधर्श्रा सुक्थ सर्वपाप प्रथ्नम ॥ को छोव्दर्गि कि पद्वी हे। ऊपर लिथे हुए लोख्से इस सुक्थ्क प्रभव त्था इन्के गोथ्रु कुछ तो व्यव्रोगि गोथ्रसोसे मिल्तजल्ते महत्व श्रत हो जयेगा। स्नान्के समय भि यह सुख्थ पादा जाता हे। उस समस्य का फल भि नीछे दिया