पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/८३

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ञप्रधरसुर झय्न्कोश (ञ्प्र) ७३ ञ्प्रधोरि किय जत हे। इन्के जातिके कुलदेवत दुल्ह नाम्कसे प्रसिद हे। दगोधोमे भि यहि देवता पूयकज जाते हे। ये लोग उदिया हात्को जल नहि पाति। केति मे थे प्रविगा होते हे और बहुदा यह इन्का दन्ध हे किन्तु इन्कि स्रत्रिवा न तो केतोमे और न वबहर्के और कोयि काम कर्ति हे। ञप्रघार्सुर- कन्सिमे क्रिश्नपका बध कर्नेके लिये यह रक्शस भोझ थ। यह भकसुर और पुथ्नक भै थ और कन्स्का सेना-नायक थ।करिश्नबाध के कलिये इस्ने ञप्रजगर्का रूप धर्ग किया। यह चार योजन लम्बि थ। ञ्परत इस्मे मुखो घाति सम्सकार गोव तथ ग्वल इस्के मुखम्से प्रवेश कर गये थब क्रिश्न्ने भि इशमे प्रवेश कर्के ञ्प्रना विरात रूप धारन किया जिस्से इस्का पेत फात गया और यह मर गया।( भग्वत द० स्क० ञ्प्र० १२) ञ्प्रधोरि-भरत्वार्श्मे सधुक्शोको ञ्प्रनेक पन्थ हे। उन्मेसे यह भि एक हे। यह ञ्प्रधोरि ञप्र्साधोर्पन्थि, ञ्प्रघोद, और और्गर इत्यधि और्नेक नाम्से प्रसिध हे। इस पन्क्ति साधु नर-मान्स तक बक्श्ग कर्ने हे और और्नेक और्धोर-क्रत्य (भशमे इसिसे यह शब्द ग्रनयुक्थ कर्योन्का सूछक होगया हे ) कर्ते हे। नाम्र्त - और्धोर शब्द शिव्को सूचक हे। ञ्र्पत इस नाम्से सम्भन्द रख्नेके कर्ग यह शोक सम्प्र- दयके विसदित होते हे। ञ्प्रधोरिश्रके नाम्से शिव्कि पूजा(उपासन) मोव्सुरक इकेरि शिवालै तथा औरन्य स्थनोमे हकी जाति हे। प्रचार -औरधुनिक समयमे इस्का और्हिक प्रचार थो जप्रसम्भव हे। १६०१ हकि जनसन्क्यसे विदिथ होत तहे कि इन्की जन्स्क्या केवल ५५० थि और उन्मेसे ५