पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/८६

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इत्यादि का ध्यान रखना चाहते है वे भांग का प्याला पीते है और जो पूरी दीक्षा लेना चाहते है वह मदिरा पान करते है। तत्पक्षातू किनाराम के समयसे ही जो अग्नि अवतक प्रज्वलित रक्खी गई है उसे फल अर्पण करते है और कोई पशु बलि दिया जाता है। बहुधा बकरे की ही बलि दी जाती है। अन्तमें सब लोग भोजन करते है और दीक्षा क्रिया समाप्तः बारह वर्षके पश्चात् वह दीक्षित शिष्य पंथमें पूर्ण रूपसे प्रवेश करते है।

     पहरावा चौर रूप-इन लोगोंके बहुत से चित्र जमा किये गये है।  (anthropological Society of Bombay.) इनके चित्रोंसे उनका शरीर चिता भस्मसे अच्छादिन देख  पड़ता है।  ब्रम्हा, विष्णु, महेश का एकाकी चिन्ह इनके ललाट पर बना रहता है।  रुद्राक्ष, सर्पकी हड्डियों, सुअरके दाँतो दी माला इनके गलेमें पड़ी रहती है।  इनके हाथमें नर-कपाल होता है।  कभी कभी इनके गले में मनुष्योंके दांतों की माला भी देख पढ़ती है।  इनकी आकृति और रूप भयंकर तथा रोमांचकारी होता है।  
 
     अचल -(१) यह दुर्योधन का मामा और शकुनि का भाई था।  यह अपने सम्पूर्ण कुटुम्ब्के सहित महाभारतके युद्धमें अर्जुन द्वारा मारा गया।  अन्य मृत योद्धओंके सहश इसका भी दर्शन धृतराष्ट्र और गन्धारी को युद्धके पश्चातू व्यासजी की कृपासे हो गया था।  (महाभारत ७-३८-१२-१३-३२- ७ ५) 
           
    (२) विष्णु सहस्रनामके निममों   से एक नाम।  अचल - बम्बई प्रांतके नासिर जिलेमें चान्दोर पहाड़ पर स्थित एक किला।  यह दिडो रीके बीस मील उत्तर स्थित एक किला।  यहाँ दिंडोरके बीस मील उत्तर स्थित है।  १=१=इ० में कैप्टन त्रिबंचने इसके एक पहाड़ी किला लिखा है और पहाड़ की चढ़ाई सीधी होनेसे कठिन है।  इस किलेमें उल समयकी केवल किलोंकी सतह और दो एक्समे पाये जाते है, इससे वह अनुमान दिया पर छप्पर की एक चौसूठी ईमारत थी।  ई ० में खर्नल मक्डॉवेलने  त्रिम्ब्डेश्वरके किलेके साथ १ ७ अन्य किले जीते थे।  उनमेसे एक यहाँ भी था।  (Blackors Maluratta War-Page 822) 
        
     अचेष्ट (ऑर्गन ) चातवरण के वसुमंडल में अन्य मूल द्वारा (gas) के सामान यह भी एक आधुनिक अविष्कृर्त गैस है।  
       
     यह वायुमण्डलमे बहुत कम प्रमारमे पाई जाती है।  १९६४ इ० के लगभग सौ वर्ष पर्वतक लोगों का यही अनुमान था कि वायुमंडल की सब क़ुछ जानकारी होगई है, अब कोई नवीन चीज़ पता लगाने को नहीं रह गई है।  वातावरण के घटक से तात्पर्य है देशकाल-स्तिथि के अनुसार अल्पांश में हेनेवाली आद्रता।  लगाने को नहीं रह गई है।  वातावरण के घटक से तात्पर्य है देशकाल-स्तिथि के अनुसार अल्पांश में होनेवाली आद्र्रता । कर्वामल वायु  ( Carbonic Acid ), उज्जन – (Hydrogen) अम्न वायु – (Ammonia) इत्यादि के अंश अलग कर देने से वातावरण का मुख्य घटक नत्र (Nitrogen)  और प्राण ही बच जाते है । अभीतक ऐसा ही विश्वास था| सर हेनरी केहेगडिसके समय तक तो इस विषय में किसी को तनिख भी संदेह नहीं था ।

यह बात ध्यान में रखने योग्य है की इसके आविष्कार का अवसर किस भांति प्राप्त हुआ । माउंट द्वारा किये हुवे प्रयोग कई वर्ष तक चलते रहे । उसने मूख्य वायु उज्जन और नत्रका विशिष्ट गुरुत्व देखने के लिए नवीन प्रयोग आरम्भ किये । उसने हेर्नेन हर्कोटकी रीती के अनुसार ही इसको अस्रावायु में मिश्रण कर रक्तोपन ताम्बे के चूर्ण से इसका प्रयोग किया । इसमें उष्णताके प्रभाव से हवा के प्राण ka संयोग अश्रके उज्जन से होता है | इस क्रिया के पूर्ण होने पर यह मिश्रण गन्धकम्रख साथ साथ मिलकर वह (निर्जल) शुष्क किया जाता है । इसमें जो अवशेष नत्र रहता है मुख्यत: वह केवल वायु मंडल का रहता है - अर्थात अम्र से तथ्यार किया हुआ ही नत्रका अंश रहता है बहुत से प्रयोगों का फल एक ही आन से नत्रके विशिष्ट गुरुत्वके संभंध में कोई संका नहीं रह गई, बल्कि मुख़्य प्रयोग से यह निस्चय होगया की बिना अश्र के उपयोग के, घटके, प्रणवायुके साथ ताम्बे के प्रयोग में नत्रका विशिष्ट गुरुत्व ही होता है । इन प्रयोगों के फल समान ही रहे । परन्तु हर्कोटकी रीती से तैयार किये हुवे नत्रके विशिष्ट गुरुत्वमें १००० का अन्तर देख पड़ा। इसके बाद हर्कोटकी रीतिसे हवा १ भाग लेकर केचल शुद्ध प्राणको आस्रमें मिलाकर केवल अम्नसे ही नत्र तैयार किया। उसका विशिष्ट गुरुत्व देखनेसे प्रतिशत। फरक मिला। हवाके प्रणवायुके संयोगी - करणको किसी मीतिसे तैयार करने पर जो नेत्र आया, उसके और सप्राणिद, अस्त्र और अमोनिनत्रयितसे तैयार किये हुए नत्रके विशिष्ट गुरुत्वमें १० प्रतिशत का फरक पड़ने लगा। यदि यह कहा जाय कि यह फरक अशुद्धता