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हिन्द स्वराज्य

हो गया है। मैन्चेस्टरने हमें जो नुकसान पहुँचाया है, उसकी तो कोई हद ही नहीं है। हिन्दुस्तानसे कारीगरी जो क़रीब-क़रीब खतम हो गई, वह मैन्चेस्टरका ही काम है।

लेकिन मैं भूलता हूँ। मैन्चेस्टरको दोष कैसे दिया जा सकता है? हमने उसके कपड़े पहने तभी तो उसने कपड़े बनाये। बंगालकी बहादुरीका वर्णन[१] जब मैंने पढ़ा तब मुझे हर्ष[२] हुआ। बंगालमें कपड़ेकी मिलें नहीं हैं, इसलिए लोगोंने अपना असली धंधा फिरसे हाथमें ले लिया। बंगाल बम्बईकी मिलोंको बढ़ावा देता है वह ठीक ही है; लेकिन अगर बंगालने तमाम मशीनोंसे परहेज किया होता, उनका बायकाट-बहिष्कार किया होता, तो और भी अच्छा होता।

मशीनें यूरोपको उजाड़ने लगी हैं और वहाँकी हवा अब हिन्दुस्तानमें चल रही है। यंत्र आजकी सभ्यताकी मुख्य निशानी है और वह महापाप है, ऐसा मैं तो साफ देख सकता हूँ।

बम्बईकी मिलोंमें जो मजदूर काम करते हैं, वे गुलाम बन गये हैं। जो औरतें उनमें काम करती हैं, उनकी हालत देखकर कोई भी काँप उठेगा। जब मिलोंकी वर्षा नहीं हुई थी तब वे औरतें भूखों नहीं मरती थीं। मशीनकी यह हवा अगर ज्यादा चली, तो हिन्दुस्तानकी बुरी दशा होगी। मेरी बात आपको कुछ मुश्किल मालूम होती होगी। लेकिन मुझे कहना चाहिये कि हम हिन्दुस्तानमें मिलें कायम करें, उसके बजाय हमारा भला इसीमें है कि हम मैन्चेस्टरको और भी रुपये भेजकर उसका सड़ा हुआ कपड़ा काममें लें; क्योंकि उसका कपड़ा काममें लेनेसे सिर्फ़ हमारे पैसे ही जायेंगे। हिन्दुस्तानमें अगर हम मैन्चेस्टर कायम करेंगे तो पैसा हिन्दुस्तानमें ही रहेगा, लेकिन वह पैसा हमारा खून चूसेगा; क्योंकि वह हमारी नीतिको बिलकुल खतम कर देगा। जो लोग मिलोंमें काम करते हैं उनकी नीति कैसी है, यह उन्हींसे पूछा जाय। उनमें से जिन्होंने रुपये जमा किये हैं, उनकी नीति दूसरे पैसेवालोंसे अच्छी नहीं हो सकती। अमरीकाके रॉकफेलरोंसे हिन्दुस्तानके रॉकफेलर कुछ कम हैं,


  1. ज़िक्र।
  2. भारी खुशी।