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उपोद्घात

लॉर्ड लोधियन जब सेवाग्राम आये थे तब उन्होंने मुझसे ‘हिन्द स्वराज्य'की नकल मांगी थी। उन्होंने कहा था : ‘गांधीजी आजकल जो कुछ भी कह रहे हैं वह इस छोटीसी किताबमें बीजके रूपमें है, और गांधीजीको ठीकसे समझनेके लिए यह किताब बार-बार पढ़नी चाहिये।'

अचरजकी बात यह है कि उसी अरसेमें श्रीमती सोफिया वाड़ियाने ‘हिन्द स्वराज्य' के बारे में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने हमारे सब मंत्रियोंसे,धारासभाके सदस्योंसे,गोरे और भारतीय सिविलियनोंसे,इतना ही नहीं , आजके लोक-शासनके अहिंसक प्रयोगकी सफलता चाहनेवाले हरएक नागरिकसे यह किताब बार-बार पढ़नेकी सिफारिश की थी। उन्होंने लिखा था: ‘अहिंसक आदमी अपने ही घरमें तानाशाही कैसे चला सकता है? वह शराब कैसे बेच सकता है? अगर वह वकील हो तो अपने मुवक्किलको अदालतमें जाकर लड़नेकी सलाह कैसे दे सकता है? इन सारे सवालोंका जवाब देते समय बहुत ही महत्वके राजनीतिक सवालोंका विचार करना ज़रूरी हो जाता है। ‘हिन्द स्वराज्य' में इन प्रश्नोंकी सिद्धान्तकी दृष्टिसे चर्चा की गई है। इसलिए वह पुस्तक लोगोंमें ज्यादा पढ़ी जानी चाहिये और उसमें जो कहा गया है उसके बारेमें लोकमत तैयार करना चाहिये।'

श्रीमती वाड़ियाकी बिनती ठीक वक्त पर की गई है। १९०९ में गांधीजीने विलायतसे लौटते हुए जहाज पर यह पुस्तक लिखी थी। हिंसक साधनोंमें विश्वास रखनेवाले कुछ भारतीयोंके साथ जो चर्चाएँ हुई थीं, उन परसे उन्होंने मूल पुस्तक गुजरातीमें लिखी थी और 'इण्डियन ओपीनियन' नामक साप्ताहिकमें सिलसिलेवार लेखोंमें उसे प्रगट किया गया था। बादमें

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