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सन्देश[१]

जिन सिद्धान्तोंके समर्थन[२] के लिए ‘हिन्द स्वराज्य' लिखी गयी थी, उन सिद्धान्तोंकी आप जाहिरात करना चाहती हैं, यह मुझे अच्छा लगता है। मूल पुस्तक गुजरातीमें लिखी गई थी; अंग्रेजी आवृत्ति[३] गुजरातीका तरजुमा है। यह पुस्तक अगर आज मुझे फिरसे लिखनी हो, तो कहीं कहीं मैं उसकी भाषा बदलूँगा। लेकिन इसे लिखनेके बाद जो तीस साल मैंने अनेक आंधियों में बिताये हैं, उनमें मुझे इस पुस्तकमें बताये हुए विचारोंमें फेरबदल करनेका कुछ भी कारण नहीं मिला। पाठक इतना ख़यालमें रखें कि कुछ कार्यकर्ताओंके साथ, जिनमें एक कट्टर अराजकतावादी[४] थे, मेरी जो बातें हुई थीं, वे जैसीकी तैसी मैंने इस पुस्तकमें दे दी हैं। पाठक इतना भी जान लें कि दक्षिण अफ्रीकाके हिन्दुस्तानियोंमें जो सड़न दाखिल होनेवाली ही थी, उसे इस पुस्तकने रोका था। इसके विरुद्ध दूसरे पल्लेमें रखनेके लिए पाठक मेरे एक स्वर्गीय मित्रकी यह राय भी जान लें कि ‘यह एक मूर्ख आदमीकी रचना है।'

सेवाग्राम, १४-७-'३८

मोहनदास करमचंद गांधी

(अंग्रेजीके गुजराती अनुवाद परसे)

२४

  1. अंग्रेजी मासिक 'आर्यन पाथ'के सितम्बर, १९३८में प्रगट हुए 'हिन्द स्वराज अंक' के लिए भेजा हुआ संदेश।
  2. ताईद।
  3. एडिशन।
  4. एनार्किस्ट।