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इस पुस्तकमें बताये हुए कार्यक्रम[१] के एक ही हिस्सेका आज अमल हो रहा है; वह है अहिंसा। लेकिन मैं अफ़सोसके साथ कबूल करूंगा कि उसका अमल भी इस पुस्तकमें दिखाई हुई भावनासे नहीं हो रहा है। अगर हो तो हिन्दुस्तान एक ही रोजमें स्वराज्य पा जाय। हिन्दुस्तान अगर प्रेमके सिद्धान्तको अपने धर्मके एक सक्रिय[२] अंशके रूपमें स्वीकार करे और उसे अपनी राजनीतिमें शामिल करे, तो स्वराज्य स्वर्गसे हिन्दुस्तानकी धरती पर उतरेगा। लेकिन मुझे दुखके साथ इस बातका भान है कि ऐसा होना बहुत दूरकी बात है।

ये वाक्य मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि आजके आन्दोलन[३] को बदनाम करनेके लिए इस पुस्तकमें से बहुतसी बातोंका हवाला दिया जाता मैंने देखा है। मैंने इस मतलबके लेख भी देखे हैं कि मैं कोई गहरी चाल चल रहा हूँ, आजकी उथल-पुथलसे लाभ उठाकर अपने अजीब ख़याल भारतके सिर लादनेकी कोशिश कर रहा हूँ और हिन्दुस्तानको नुकसान पहुँचाकर अपने धार्मिक प्रयोग कर रहा हूँ। इसका मेरे पास यही जवाब है कि सत्याग्रह ऐसी कोई कच्ची खोखली चीज नहीं है। उसमें कुछ भी दुराव-छिपाव नहीं है, उसमें कुछ भी गुप्तता नहीं है। ‘हिन्द स्वराज्य' में बताये हुए संपूर्ण जीवन-सिद्धांतके एक भागको आचरणमें लानेकी कोशिश हो रही है, इसमें कोई शक नहीं। ऐसा नहीं कि उस समूचे सिद्धान्तका अमल करनेमें जोखिम है; लेकिन आज देशके सामने जो प्रश्न[४] है उसके साथ जिन हिस्सोंका कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसे हिस्से मेरे लेखोंमें से देकर लोगोंको भड़कानेमें न्याय हरगिज नहीं है।

जनवरी, १९२१

मोहनदास करमचंद गांधी

(‘यंग इंडिया' के गुजराती अनुवाद परसे)

  1. प्रोग्राम।
  2. अमली।
  3. तहरीक।
  4. सवाल।