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हिन्द स्वराज्य

पाठक: आपकी यह बात मुझे पसन्द आयी। इससे मुझे जो ठीक लगे वह बात कहनेकी मुझमें हिम्मत आई है। अभी मेरी एक शंका रह गई है। कांग्रेसके आरम्भसे स्वराज्यकी नींव पड़ी, यह कैसे कहा जा सकता है?

संपादक: देखिये, कांग्रेसने अलग अलग जगहों पर हिन्दुस्तानियोंको इकट्ठा करके उनमें ‘हम एक-राष्ट्र हैं’ ऐसा जोश पैदा किया। कांग्रेस पर सरकारकी कड़ी नज़र रहती थी। महसूलका हक प्रजाको होना चाहिये, ऐसी मांग कांग्रेसने हमेशा की है। जैसा स्वराज्य कैनेड़ामें है वैसा स्वराज्य कांग्रेसने हमेशा चाहा है । वैसा स्वराज्य मिलेगा या नहीं मिलेगा, वैसा स्वराज्य हमें चाहिये या नहीं चाहिये, उससे बढ़कर दूसरा कोई स्वराज्य है या नहीं, यह सवाल अलग है। मुझे दिखाना तो इतना ही है कि कांग्रेसने हिन्दको स्वराज्यका रस चखाया। इसका जस कोई और लेना चाहे तो वह ठीक न होगा, और हम भी ऐसा मानें तो बेक़दर[१] ठहरेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि जो मक़सद हम हासिल करना चाहते हैं उसमें मुसीबतें पैदा होंगी । कांग्रेसको अलग समझने और स्वराज्यके ख़िलाफ माननेसे हम उसका उपयोग नहीं कर सकते।

  1. कृतघ्न।