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हिन्द स्वराज्य


नामुमकिन है। बंग-भंगको रद करनेकी मांग स्वराज्यकी मांगके बराबर है। बंगालके नेता यह बात खूब जानते हैं। अंग्रेजी हुकूमत भी यह बात समझती है। इसीलिए टुकड़े रद नहीं हुए। ज्यों ज्यों दिन बीतते जाते हैं, त्यों त्यों प्रजा तैयार होती जाती है। प्रजा एक दिनमें नहीं बनती; उसे बननेमें कई बरस लग जाते हैं।

पाठक: बंग-भंगके नतीजे आपने क्या देखे?

संपादक: आज तक हम मानते आये हैं कि बादशाहसे अर्ज़ करना चाहिये और वैसा करने पर भी दाद न मिले तो दुःख सहन करना चाहिये; अलबत्ता, अर्ज़ तो करते ही रहना चाहिये। बंगालके टुकड़े होनेके बाद लोगोंने देखा कि हमारी अर्ज़ के पीछे कुछ ताक़त चाहिये, लोगोंमें कष्ट सहन करनेकी शक्ति चाहिये। यह नया जोश टुकड़े होनेका अहम नतीजा माना जायगा। यह जोश अखबारोके लेखोंमें दिखाई दिया। लेख कड़े होने लगे। जो बात लोग डरते हुए या चोरी-चुपके करते थे, वह खुल्लमखुल्ला होने लगी-लिखी जाने लगी। स्वदेशीका आन्दोलन[१] चला। अंग्रेजोंको देखकर छोटे-बड़े सब भागते थे, पर अब नहीं डरते; मार-पीटसे भी नहीं डरते; जेल जानेमें भी उन्हें कोई हर्ज नहीं मालूम होता; और हिन्दके पुत्ररत्न आज देशनिकाला भुगतते हुए (विदेशोंमें) विराजमान हैं। यह चीज उस अर्ज़से अलग है। यों लोगोंमें खलबली मच रही है। बंगालकी हवा उत्तरमें पंजाब तक और (दक्षिणमें) मद्रास इलाकेमें कन्याकुमारी तक पहुँच गई है।

पाठक: इसके अलावा और कोई जानने लायक नतीजा आपको सूझता है?

संपादक: बंग-भंगसे जैसे अंग्रेजी जहाजमें दरार पड़ी है, वैसे ही हममें भी दरार-फूट-पड़ी है। बड़ी घटनाओंके परिणाम[२]भी यों बड़े ही होते हैं। हमारे नेताओंमें दो दल हो गये हैं: एक मॉडरेट और दूसरा एक्स्ट्रीमिस्ट। उनको हम ‘धीमे’ और ‘उतावले' कह सकते हैं। (‘नरम दल’ व ‘गरम दल’ शब्द भी चलते हैं।) कोई मॉडरेटको डरपोक पक्ष और एक्स्ट्रीमिस्टको हिम्मतवाला

  1. तहरीक।
  2. नतीज़े।