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हिन्द स्वराज्य


कहते थे कि हिन्दुस्तानमें असंतोष फैलानेकी ज़रूरत है। यह असंतोष बहुत उपयोगी चीज है। जब तक आदमी अपनी चालू हालतमें खुश रहता है, तब तक उसमें से निकलनेके लिए उसे समझाना मुश्किल है। इसलिए हर एक सुधारके पहले असंतोष होना ही चाहिये। चालू चीजसे ऊब जाने पर ही उसे फेंक देनेको मन करता है। ऐसा असंतोष हममें महान हिन्दुस्तानियोंकी और अंग्रेजोंकी पुस्तकें पढ़कर पैदा हुआ है। उस असंतोषसे अशान्ति पैदा हुई; और उस अशान्तिमें कई लोग मरे, कई बरबाद हुए, कई जेल गये, कईको देशनिकाला हुआ। आगे भी ऐसा होगा; और होना चाहिये। ये सब लक्षण[१] अच्छे माने जा सकते हैं। लेकिन इनका नतीजा बुरा भी हो सकता है।

स्वराज्य क्या है?

पाठक: कांग्रेसने हिन्दुस्तानको एक-राष्ट्र बनानेके लिए क्या किया, बंग-भंगसे जागृति कैसे हुई, अशान्ति और असंतोष कैसे फैले, यह सब जाना। अब मैं यह जानना चाहता हूँ कि स्वराज्यके बारेमें आपके क्या ख़याल है। मुझे डर है कि शायद हमारी समझमें फ़रक हो।

संपादक: फ़रक होना मुमकिन है। स्वराज्यके लिए आप-हम सब अधीर बन रहे हैं, लेकिन वह क्या है इस बारेमें हम ठीक राय पर नहीं पहुंचे हैं। अंग्रेजोंको निकाल बाहर करना चाहिये, यह विचार बहुतोंके मुँह से सुना जाता है; लेकिन उन्हें क्यों निकालना चाहिये, इसका कोई ठीक ख़याल किया गया हो ऐसा नहीं लगता। आपसे ही एक सवाल मैं पूछता हूँ। मान लीजिये कि हम माँगते हैं उतना सब अंग्रेज हमें दे दें, तो फिर उन्हें (यहाँसे) निकाल देनेकी ज़रूरत आप समझते हैं?

पाठक: मैं तो उनसे एक ही चीज मांगूँगा। वह है: मेहरबानी करके आप हमारे मुल्कसे चले जायें। यह माँग वे कबूल करें और हिन्दुस्तानसे चले जायं,

  1. निशानियां।