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दो शब्द

लंदनसे दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए गांधीजीने रास्तेमें जो संवाद लिखा और ‘हिन्द स्वराज्य' के नामसे छपाया, उसे आज पचास बरस हो गये।

दक्षिण अफ्रीकाके भारतीय लोगोंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए सतत लड़ते हुए गांधीजी १९०९ में लंदन गये थे। वहां कई क्रांतिकारी स्वराज्यप्रेमी भारतीय नवयुवक उन्हें मिले। उनसे गांधीजीकी जो बातचीत हुई उसीका सार गांधीजीने एक काल्पनिक संवादमें ग्रथित किया है। इस संवादमें गांधीजीके उस समयके महत्त्वके सब विचार आ जाते हैं। किताबके बारेमें गांधीजी स्वयं कहा है कि "मेरी यह छोटीसी किताब इतनी निर्दोष है कि बच्चोंके हाथमें भी यह दी जा सकती है। यह किताब द्वेषधर्मकी जगह प्रेमधर्म सिखाती है; हिंसाकी जगह आत्म-बलिदानको स्थापित करती है; और पशुबलके खिलाफ टक्कर लेनेके लिए आत्मबलको खड़ा करती है।"गांधीजी इस निर्णय पर पहुंचे थे कि पश्चिमके देशोंमें, यूरोप-अमेरिकामें जो आधुनिक सम्यता जोर कर रही है, वह कल्याणकारी नहीं है, मनुष्यहितके लिए वह सत्यानाशकारी है। गांधीजी मानते थे कि भारतमें और सारी दुनियामें प्राचीन कालसे जो धर्म-परायण नीति-प्रधान सभ्यता चली आयी है वही सच्ची सभ्यता है।

गांधीजी का कहना था कि भारतसे केवल अंग्रेजोंको और उनके राज्यको हटानेसे भारतको अपनी सच्ची सभ्यताका स्वराज्य नहीं मिलेगा। हम अंग्रेजोंको हटा दें और उन्हींकी सभ्यताका और उन्हींके आदर्शका स्वीकार करें तो हमारा उद्धार नहीं होगा। हमें अपनी आत्माको बचाना चाहिये। भारतके लिखे-पढ़े चंद लोग पश्चिमके मोहमें फंस गये हैं। जो लोग