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हिन्द स्वराज्य


तो वह है जो रोगकी जड़ खोजे। आप अगर हिन्दुस्तानके रोगके डॉक्टर होना चाहते हैं, तो आपको रोगकी जड़ खोजनी ही पड़ेगी।

पाठक: आप सच कहते हैं। अब मुझे समझानेके लिए आपको दलील करनेकी ज़रूरत नहीं रहेगी। मैं आपके विचार जाननेके लिए अधीर बन गया हूँ। अब हम बहुत ही दिलचस्प विषय[१] पर आ गये हैं, इसलिए मुझे आप अपने ही विचार बतायें। जब उनके बारेमें शंका पैदा होगी तब मैं आपको रोकूँगा।

संपादक: बहुत अच्छा । पर मुझे डर है कि आगे चलने पर हमारे बीच फिरसे मतभेद ज़रूर होगा। फिर भी जब आप मुझे रोकेंगे तभी मैं दलीलमें उतरूंगा। हमने देखा कि अंग्रेज व्यापारियोंको हमने बढ़ावा दिया तभी वे हिन्दुस्तानमें अपने पैर फैला सके। वैसे ही जब हमारे राजा लोग आपसमें झगड़े तब उन्होंने कंपनी बहादुरसे मदद माँगी। कंपनी बहादुर व्यापार और लड़ाईके काममें कुशल[२] थी। उसमें उसे नीति-अनीतिकी अड़चन नहीं थी। व्यापार बढ़ाना और पैसा कमाना, यही उसका धंधा था। उसमें जब हमने मदद दी तब उसने हमारी मदद ली और अपनी कोठियाँ बढ़ाईं। कोठियोंका बचाव करनेके लिए उसने लश्कर रखा। उस लश्करका हमने उपयोग किया, इसलिए अब उसे दोष देना बेकार है। उस वक्त हिन्दू-मुसलमानोंके बीच बैर था। कंपनीको उससे मौक़ा मिला। इस तरह हमने कंपनीके लिए ऐसे संजोग पैदा किये, जिससे हिन्दुस्तान पर उसका अधिकार हो जाय। इसलिए हिन्दुस्तान गया ऐसा कहनेके बजाय ज्यादा सच यह कहना होगा कि हमने हिन्दुस्तान अंग्रजोंको दिया।

पाठक: अब अंग्रेज हिन्दुस्तानको कैसे रख सकते हैं सो कहिये।

संपादक: जैसे हमने हिन्दुस्तान उन्हें दिया वैसे ही हम हिन्दुस्तानको उनके पास रहने देते हैं। उन्होंने तलवारसे हिन्दुस्तान लिया ऐसा उनमें से कुछ कहते हैं, और ऐसा भी कहते हैं कि तलवारसे वे उसे रख रहे हैं। ये दोनों बातें गलत हैं। हिन्दुस्तानको रखनेके लिए तलवार किसी काममें नहीं आ सकती; हम खुद ही उन्हें यहाँ रहने देते हैं।

  1. बात।
  2. होशियार।