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हिन्दुस्तान कैसे गया?


नेपोलियनने अंग्रेजोंको व्यापारी प्रजा कहा है। वह बिलकुल ठीक बात है। वे जिस देशको (अपने काबूमें) रखते हैं, उसे व्यापारके लिए रखते हैं, यह जानने लायक है। उनकी फ़ौजें और जंगी बेड़े सिर्फ व्यापारकी रक्षा[१] के लिए हैं। जब ट्रान्सवालमें व्यापारका लालच नहीं था तब मि॰ ग्लेडस्टनको तुरन्त सूझ गया कि ट्रान्सवाल अंग्रेजोंको नहीं रखना चाहिये। जब ट्रान्सवालमें व्यापारका आकर्षण देखा तब उससे लड़ाई की गई और मि॰ चेम्बरलेनने यह ढूंढ़ निकाला कि ट्रान्सवाल पर अंग्रेजोंकी हुकूमत है। मरहूम प्रेसिडेन्ट क्रूगरसे किसीने सवाल किया : ‘चाँदमें सोना है या नहीं?' उसने जवाब दिया :'चाँदमें सोना होनेकी संभावना नहीं है,क्योंकि सोना होता तो अंग्रेज अपने राजके साथ उसे जोड़ देते।' पैसा उनका खुदा है, यह ध्यानमें रखनेसे सब बातें साफ हो जायेगी।

तब अंग्रेजोंको हम हिन्दुस्तामें सिर्फ़ अपनी गरज़से रखते हैं। हमें उनका व्यापार पसंद आता है। वे चालबाजी करके हमें रिझाते हैं और रिझाकर हमसे काम लेते हैं। इसमें उनका दोष निकालना उनकी सत्ताको निभाने जैसा है। इसके अलावा, हम आपसमें झगड़कर उन्हें ज्यादा बढ़ावा देते हैं।

अगर आप ऊपरकी बातको ठीक समझते हैं, तो हमने यह साबित कर दिया कि अंग्रेज व्यापारके लिए यहाँ आये, व्यापारके लिए यहाँ रहते हैं और उनके रहनेमें हम ही मददगार हैं। उनके हथियार तो बिलकुल बेकार हैं।

इस मौक़े पर मैं आपको याद दिलाता हूँ कि जापानमें अंग्रेजी झंडा लहराता है ऐसा आप मानिये। जापानके साथ अंग्रेजोंने जो करार किया है वह अपने व्यापारके लिए किया है। और आप देखेंगे कि जापानमें अंग्रेज लोग अपना व्यापार खूब जमायेंगे। अंग्रेज अपने मालके लिए सारी दुनियाको अपना बाजार बनाना चाहते हैं। यह सच है कि ऐसा वे नहीं कर सकेंगे। इसमें उनका कोई क़सूर नहीं माना जा सकता। अपनी कोशिशमें वे कोई कसर नहीं रखेंगे।

  1. रखवाली।