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हिन्द स्वराज्य

पाठक : आपने जो कुछ कहा उस पर मैं सोचूँगा। लेकिन एक सवाल मेरे मनमें इसी समय उठता है। मुसलमान हिन्दुस्तानमें आये उसके पहलेके हिन्दुस्तानकी बात आपने की। लेकिन अब तो मुसलमानों, पारसियों, ईसाइयोंकी हिन्दुस्तानमें बड़ी संख्या है। वे एक-राष्ट्र नहीं हो सकते। कहा जाता है कि हिन्दू-मुसलमानोंमें कट्टर बैर है। हमारी कहावतें भी ऐसी ही हैं।'मियां और महादेवकी नहीं बनेगी।' हिन्दू पूर्वमें ईश्वरको पूजता है, तो मुस्लिम पश्चिममें पूजता है। मुसलमान हिन्दूको बुतपरस्त-मूर्तिपूजक–मानकर उससे नफ़रत करता है। हिन्दू मूर्तिपूजक है, मुसलमान मूर्तिको तोड़नेवाला है। हिन्दू गायको पूजता है, मुसलमान उसे मारता है। हिन्दू अहिंसक है, मुसलमान हिंसक। यों पग-पग पर जो विरोध[१] है, वह कैसे मिटे और हिन्दुस्तान एक कैसे हो?

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हिन्दुस्तानकी दशा-३

हिन्दू-मुसलमान

संपादक : आपका आख़िरी सवाल बड़ा गम्भीर मालूम होता है। लेकिन सोचने पर वह सहल मालूम होगा। यह सवाल उठा है, उसका कारण भी रेल, वकील और डॉक्टर हैं। वकीलों और डॉक्टरोंका विचार तो अभी करना बाकी है। रेलोंका विचार हम कर चुके। इतना मैं जोड़ता हूँ कि मनुष्य इस तरह पैदा किया गया है कि अपने हाथ-पैरसे बने उतनी ही आने-जाने वगैराकी हलचल उसे करनी चाहिये। अगर हम रेल वगैरा साधनोंसे दौड़धूप करें ही नहीं, तो बहुत पेचीदे सवाल हमारे सामने आयेंगे ही नहीं। हम खुद होकर दुखको न्योतते हैं। भगवानने मनुष्यकी हद उसके शरीरकी बनावटसे ही बाँध दी, लेकिन मनुष्यने उस बनावटकी हदको लाँघनेके उपाय[२] ढूँढ़ निकाले। मनुष्यको अक़ल इसलिए दी गई है कि उसकी मददसे वह भगवानको पहचाने।

  1. बेमेल।
  2. तरकीबें।