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हिन्दुस्तानकी दशा-३

लेकिन जैसे मैं गायको पूजता हूँ वैसे मैं मनुष्यको भी पूजता हूँ। जैसे गाय उपयोगी है वैसे मनुष्य भी-फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू-उपयोगी है। तब क्या गायको बचानेके लिए मैं मुसलमानसे लडूँगा? क्या उसे मैं मारूँगा? ऐसा करनेसे मैं मुसलमानका और गायका भी दुश्मन बनूँगा। इसलिए मैं कहूँगा कि गायकी रक्षा करनेका एक यही उपाय है कि मुझे अपने मुसलमान भाईके सामने हाथ जोड़ने चाहिये और उसे देशके खातिर गायको बचानेके लिए समझाना चाहिये। अगर वह न समझे तो मुझे गायको मरने देना चाहिये, क्योंकि वह मेरे बसकी बात नहीं। अगर मुझे गाय पर अत्यंत[१] दया आती हो तो अपनी जान दे देनी चाहिये, लेकिन मुसलमानकी जान नहीं लेनी चाहिये। वही धार्मिक कानून है, ऐसा मैं तो मानता हूँ।

‘हां’ और ‘नहीं' के बीच हमेशा बैर रहता है। अगर मैं वाद-विवाद[२] करूंगा, तो मुसलमान भी वाद-विवाद करेगा। अगर मैं टेढ़ा बनूंगा, तो वह भी टेढ़ा बनेगा। अगर मैं बालिश्त भर नमूँगा, तो वह हाथ भर नमेगा; और अगर वह नहीं भी नमे तो मेरा नमना ग़लत नहीं कहलायेगा। जब हमने जिद की तब गोकुशी बढ़ी। मेरी राय है कि गोरक्षा प्रचारिणी सभा गोवंध प्रचारिणी सभा मानी जानी चाहिये। ऐसी सभाका होना हमारे लिए बदनामीकी बात है। जब गायकी रक्षा करना हम भूल गये तब ऐसी सभाकी ज़रूरत पड़ी होगी।

मेरा भाई गायको मारने दौड़े, तो मैं उसके साथ कैसा बरताव करूँगा? उसे मारूँगा या उसके पैरोंमें पडूँगा? अगर आप कहें कि मुझे उसके पांव पड़ना चाहिये, तो मुझे मुसलमान भाईके भी पांव पड़ना चाहिये।

गायको दुख देकर हिन्दू गायका वध करता है; इससे गायको कौन छुड़ाता है? जो हिन्दू गायकी औलादक[३]को पैना (आर) भोंकता है, उस हिन्दूको कौन समझाता है? इससे हमारे एक-राष्ट्र होनेमें कोई रुकावट नहीं आई है।

अंतमें, हिन्दू अहिंसक और मुसलमान हिंसक है, यह बात अगर सही हो तो अहिंसकका धर्म क्या है? अहिंसकको आदमीकी हिंसा करनी चाहिये,

  1. बेहद।
  2. बहस।
  3. बैलको।