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हिन्दुस्तानकी दशा-३


उखड़ जाता है। सब अपने अपने धर्मका स्वरूप समझकर उससे चिपके रहें और शास्त्रियों व मुल्लाओंको बीचमें न आने दें, तो झगड़ेका मुँह हमेशाके लिए काला ही रहेगा।

पाठक : अंग्रेज दोनों क़ौमोंका मेल होने देंगे?

संपादक : यह सवाल डरपोक आदमीका है। यह सवाल हमारी हीनताको दिखाता है। अगर दो भाई चाहते हों कि उनका आपसमें मेल बना रहे, तो कौन उनके बीचमें आ सकता है? अगर तीसरा आदमी दोनोंके बीच झगड़ा पैदा कर सके, तो उन भाईयोंको हम कच्चे दिलके कहेंगे। उसी तरह अगर हम-हिन्दू और मुसलमान-कच्चे दिलके होंगे, तो फिर अंग्रेजोंका क़सूर निकालना बेकार होगा। कच्चा घड़ा एक कंकड़से नहीं तो दूसरे कंकड़से फूटेगा ही। घडे़को बचानेका रास्ता यह नहीं है कि उसे कंकडसे दूर रखा जाय, बल्कि यह है कि उसे पक्का बनाया जाय, जिससे कंकड़का भय ही न रहे। उसी तरह हमें पक्के दिलके बनना है। हम दोनोंमें से कोई एक (भी) पक्के दिलके होंगे, तो तीसरेकी कुछ नहीं चलेगी। यह काम हिन्दू आसानीसे कर सकते हैं। उनकी संख्या बड़ी है, वे अपनेको ज्यादा पढ़े-लिखे मानते हैं; इसलिए वे पक्का दिल रख सकते हैं।

दोंनों क़ौमोके बीच अविश्वास[१] है, इसलिए मुसलमान लॉर्ड मॉर्लेसे कुछ हक मांगते हैं। इसमें हिन्दू क्यों विरोध करें? अगर हिन्दू विरोध न करें, तो अंग्रेज चौकेंगे, मुसलमान धीरे धीरे हिन्दुओंका भरोसा करने लगेंगे और दोंनोका भाईचारा बढे़गा। अपने झगड़े अंग्रेजोके पास ले जानेमें हमें शरमाना चाहिए। ऐसा करनेसे हिन्दू कुछ खोनेवाले नहीं हैं; इसका हिसाब आप खुद लगा सकेंगे। जिस आदमीने दूसरे पर विश्वास किया, उसने आज तक कुछ खोया नहीं है।

मैं यह नहीं कहना चाहता कि हिन्दू-मुसलमान कभी झगड़ेंगे ही नहीं। दो भाई साथ रहें तो उनके बीच तकरार होती है। कभी हमारे सिर भी फूटेंगे। ऐसा होना ज़रूरी नहीं है, लेकिन सब लोग एकसी अकलके नहीं होते। दोंनों

  1. नाएतबार।