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हिन्द स्वराज्य


जोशमें आते हैं तब अकसर गलत काम कर बैठते हैं। उन्हें हमें सहन करना होगा। लेकिन ऐसी तकरारको भी बड़ी वकालत बघारकर हम अंग्रेजोंकी अदालतमें न ले जायें। दो आदमी लडें, लड़ाईमें दोनोंके सिर या एकका सिर फूटे, तो उसमें तीसरा क्या न्याय करेगा? जो लड़ेंगे वे जख्मी भी होंगे। बदनसे बदन टकरायेगा तब कुछ निशानी तो रहेगी ही। उसमें न्याय क्या हो सकता है?

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हिन्दुस्तानकी दशा-४

वकील

पाठक : आप कहते हैं कि दो आदमी झगड़े तब उसका न्याय भी नहीं कराना चाहिये। यह तो आपने अजीब बात कही।

संपादक : इसे अजीब कहिये या दूसरा कोई विशेषण[१] लगाइये, पर बात सही है। आपकी शंका हमें वकील-डॉक्टरोंकी पहचान कराती हैं। मेरी राय है कि वकीलोंने हिन्दुस्तानको गुलाम बनाया है, हिन्दू-मुसलमानोंके झगड़े बढ़ाये हैं और अंग्रेजी हुकूमतको यहाँ मजबूत किया है।

पाठक : ऐसे इलजाम लगाना आसान है, लेकिन उन्हें साबित करना मुश्किल होगा। वकीलोंके सिवा दूसरा कौन हमें आज़ादीका मार्ग बताता? उनके सिवा गरीबोंका बचाव कौन करता? उनके सिवा कौन हमें न्याय दिलाता? देखिये, स्व॰ मनमोहन घोषने कितनोंको बचाया? खुद एक कौड़ी भी उन्होंने नहीं ली। कांग्रेस, जिसके आपने ही बखान किये हैं, वकीलोंसे निभती है और उनकी मेहनतसे ही उसमें काम होते हैं। इस वर्गकी[२] आप निंदा करें, यह इन्साफ़के साथ गैर-इन्साफ़ करने जैसा है। वह तो आपके हाथमें अखबार आया इसलिए चाहे जो बोलनेकी छूट लेने जैसा लगता है।

संपादक : जैसा आप मानते हैं वैसा ही मैं भी एक समय मानता था। वकीलोंने कभी कोई अच्छा काम नहीं किया, ऐसा मैं आपसे नहीं कहना

  1. सिफ़त।
  2. जमात।