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हिन्दुस्तानकी दशा-४


चाहता। मि॰ मनमोहन घोषकी मैं इज़्ज़त करता हूँ। उन्होंने गरीबोंकी मदद की थी यह बात सही है। कांग्रेसमें वकीलोंने कुछ काम किया है, यह भी हम मान सकते हैं। वकील भी आखिर मनुष्य हैं; और मनुष्यजातिमें कुछ तो अच्छाई है ही। वकीलोंकी भलमनसीके जो बहुतसे किस्से देखनेमें आते हैं, वे तभी हुए जब वे अपनेको वकील समझना भूल गये। मुझे तो आपको सिर्फ़ यही दिखाना है कि उनका धंधा उन्हें अनीति सिखानेवाला है। वे बुरे लालचमें फँसते हैं, जिसमें से उबरनेवाले बिरले ही होते हैं।

हिन्दू-मुसलमान आपसमें लड़े हैं। तटस्थ[१] आदमी उनसे कहेगा कि आप गयी-बीतीको भूल जायें; इसमें दोनोंका क़सूर रहा होगा। अब दोनों मिलकर रहिये। लेकिन वे वकीलके पास जाते हैं। वकीलका फ़र्ज हो जाता है कि वह मुवक्किलकी ओर जोर लगाये। मुवक्किलके ख़यालमें भी न हों ऐसी दलीलें मुवक्किल ओरसे ढूंढ़ना वकीलका काम है। अगर वह ऐसा नहीं करता तो माना जायगा कि वह अपने पेशेको बट्टा लगाता है। इसलिए वकील तो आम तौर पर झगड़ा आगे बढ़ानेको ही सलाह देगा।

लोग दूसरोंका दुख दूर करनेके लिए नहीं, बल्कि पैसा पैदा करनेके लिए वकील बनते हैं। वह एक कमाईका रास्ता है। इसलिए वकीलका स्वार्थ झगड़ा बढ़ानेमें है। वह तो मेरी जानी हुई बात है कि जब झगड़े होते हैं तब वकील खुश होते हैं। मुख़तार लोग भी वकीलकी जातके हैं। जहाँ झगड़े नहीं होते वहाँ भी वे झगड़े खड़े करते हैं। उनके दलाल जोंककी तरह गरीब लोगोंसे चिपकते हैं और उनका खून चूस लेते हैं। वह पेशा ऐसा है कि उसमें आदमियोंको झगड़ेके लिए बढ़ावा मिलता ही है। वकील लोग निठल्ले होते हैं। आलसी लोग ऐश-आराम करने के लिए वकील बनते हैं। यह सही बात है। वकालतका पेशा बड़ा आबरूदार पेशा है, ऐसा खोज निकालनेवाले भी वकील ही हैं। कानून वे बनाते हैं, उसकी तारीफ़ भी वे ही करते हैं। लोगोंसे क्या दाम लिये जायें, यह भी वे ही तय करते हैं; और लोगों पर रोब जमानेके लिए आडंबर[२] ऐसा करते हैं, मानो वे आसमानसे उतर कर आये हुए देवदूत[३] हों!

  1. बेतरफ़दार।
  2. दिखावा।
  3. फ़रिश्ते।