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और यांत्रिक कौशल्य (Technology)का सहारा हम न लें और गांधीजीके ही सांस्कृतिक आदर्शका स्वीकार करें, तो भारत जैसा महान देश साउदी अरेबिया जैसे नगण्य देशकी कोटि तक पहुंच जायगा, यह डर भारतके आजके सभी पक्षके नेताओंको है।

भारत शांततावादी है, युद्ध-विरोधी है। दुनियाका साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषणवाद, राष्ट्र-राष्ट्रके बीच फैला हुआ उच्च-नीच भाव इन सबका विरोध करनेका कंकण भारत-सरकारने अपने हाथमें बांधा है। तो भी जिस तरहके आदर्शका गांधीजीने अपनी किताब 'हिन्द स्वराज्य' में पुरस्कार किया है, उसका तो उसने अस्वीकार ही किया है। स्वाभाविक है कि इस तरहके नये भारतमें अंग्रेजी भाषाका ही बोलबाला रहे। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, किन्तु रशिया, जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, जापान आदि विज्ञान-परायण राष्ट्रोंकी मददसे भारत यंत्र-संस्कृतिमें जोरोंसे आगे बढ़ रहा है। और उसकी आंतरिक निष्ठा मानती है कि यही सच्चा मार्ग है। पू॰ गांधीजीके विचार जैसे हैं वैसे नहीं चल सकते।

यह नई निष्ठा केवल नेहरूजीकी नहीं, किन्तु करीब करीब सारे राष्ट्रकी है। श्री विनोबा भावे गांधीजीके आत्मवादका, सर्वोदयका और अहिंसक शोषण-विहीन समाज-रचनाका जोरोंसे पुरस्कार कर रहे हैं। ग्रामराज्यकी स्थापनासे शांतिसेनाके द्वारा, नई तालीमके ज़रिये, स्त्री-जातिकी जागृतिके द्वारा वे मानस-परिवर्तन, जीवन-परिवर्तन और समाज-परिवर्तनका पुरस्कार कर रहे हैं। भूदान और ग्रामदानके द्वारा सामाजिक जीवनमें आमूलाग्र क्रांति करनेकी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने भी देख लिया है कि पश्चिमके विज्ञान और यंत्र-कौशल्यके बिना सर्वोदय अधूरा ही रहेगा।

जब अमेरिकाका प्रजासत्तावाद, रशिया और चीनका साम्यवाद, दूसरे और देशोंका और भारतका समाजसत्तावाद और गांधीजीका सर्वोदय दुनियाके सामने स्वयंवरके लिए खड़े हैं, ऐसे अवसर पर गांधीजीकी इस युगांतरकारी छोटीसी किताबका अध्ययन जोरोंसे होना चाहिये। गांधीजी