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हिन्द स्वराज्य


अब भी दुखी हैं। इटलीके मजदूरोंकी दाद-फ़रियाद नहीं सुनी जाती, इसलिए वे लोग खून करते हैं, विरोध करते हैं, सिर फोड़ते हैं और वहां बलवा होनेका डर आज भी बना हुआ है। आस्ट्रियाके जानेसे इटलीको क्या लाभ हुआ? नामका ही लाभ हुआ। जिन सुधारोंके लिए जंग मचा वे सुधार हुए नहीं, प्रजाकी हालत सुधरी नहीं।

हिन्दुस्तानकी ऐसी दशा करनेका तो आपका इरादा नहीं ही होगा। मैं मानता हूँ कि आपका विचार हिन्दुस्तानके करोड़ों लोगोंको सुखी करनेका होगा, यह नहीं कि आप यामैं राजसत्ता ले लूँ। अगर ऐसा है तो हमें एक ही विचार करना चाहिये। वह यह कि प्रजा स्वतन्त्र[१] कैसे हो।

आप कबूल करेंगे कि कुछ देशी रियासतोंमें प्रजा कुचली जाती है। वहाँके शासक नीचतासे लोगोंको कुचलते हैं। उनका जुल्म अंग्रेजोंके जुल्मसे भी ज्यादा है। ऐसा जुल्म अगर आप हिन्दुस्तानमें चाहते हो, तो हमारी पटरी कभी नहीं बैठेगी।

मेरा स्वदेशाभिमान[२] मुझे यह नहीं सिखाता कि देशी राजाओंके मातहत जिस तरह प्रजा कुचली जाती है उसी तरह उसे कुचलने दिया जाय। मुझमें बल होगा तो मैं देशी राजाओंके जुल्मके खिलाफ़ और अंग्रेजी जुल्मके खिलाफ़ जूझूँगा।

स्वदेशाभिमानका अर्थ मैं देशका हित[३] समझता हूँ। अगर देशका हित अंग्रेजोंके हाथों होता हो, तो मैं आज अंग्रेजोंको झुककर नमस्कार करूँगा। अगर कोई अंग्रेज कहे कि देशको आज़ाद करना चाहिये, जुल्मके खिलाफ़ होना चाहिये और लोगोंकी सेवा करनी चाहिये, तो उस अंग्रेजको मैं हिन्दुस्तानी मानकर उसका स्वागत करूँगा।

फिर, इटली की तरह जब हिन्दुस्तानको हथियार मिलें तभी वह लड़ सकता है; पर इस भगीरथ (बहुत बड़े) कामका तो, मालूम होता है, आपने विचार ही नहीं किया है। अंग्रेज गोला-बारूदसे पूरी तरह लैस हैं, इससे मुझे डर नहीं लगता। लेकिन ऐसा तो दीखता है कि उनके हथियारोंसे उन्हींके

  1. आज़ाद।
  2. हुब्बेवतन।
  3. भला।