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हिन्द स्वराज्य


लायक है। उसका गलत अर्थ करके लोग भुलावेमें पड़ गये हैं। साधन बीज है और साध्य-हासिल करनेकी चीज-पेड़ है। इसलिए जितना सम्बन्ध चीज और पेड़के बीच है, उतना ही साधन और साध्यके बीच है। शैतानको भजकर मैं ईश्वर-भजनका फल पाउँ, यह कमी हो ही नहीं सकता। इसलिए यह कहना कि हमें तो ईश्वरको ही भजना है, साधन भले शैतान हो, बिलकुल अज्ञानकी बात है। जैसी करनी वैसी भरनी।

अंग्रेजोंने मार-काट करके १८३३ में वोटके (मतके) विशेष अधिकार पाये। क्या मार-काट करके वे अपना फ़र्ज समझ सके? उनकी मुराद अधिकार पानेकी थी, इसलिए उन्होंने मार-काट मचाकर अधिकार पा लिये। सच्चे अधिकार तो फ़र्जके फल[१] हैं; वे अधिकार उन्होंने नहीं पाये। नतीजा यह हुआ कि सबने अधिकार पानेका प्रयत्न किया, लेकिन फ़र्ज सो गया। जहाँ सभी अधिकारकी बात करें, वहाँ कौन किसको दे? वे कोई भी फ़र्ज अदा नहीं करते, ऐसा कहनेका मतलब यहाँ नहीं है। लेकिन जो अधिकार वे मांगते थे उन्हें हासिल करके उन्होंने वे फ़र्ज पूरे नहीं किये जो उन्हें करने चाहिये थे। उन्होंने योग्यता प्राप्त नहीं की, इसलिए उनके अधिकार उनकी गरदन पर जूएकी तरह सवार हो बैठे हैं। इसलिए जो कुछ उन्होंने पाया है, वह उनके साधनका ही परिणाम[२] है। जैसी चीज उन्हें चाहिये थी वैसे साधन उन्होंने काममें लिये।

मुझे अगर आपसे आपकी घड़ी छीन लेनी हो, तो बेशक आपके साथ मुझे मार-पीट करनी होगी। लेकिन अगर मुझे आपकी घड़ी खरीदनी हो, तो आपको दाम देने होंगे। अगर मुझे बख्शिशके तौर पर आपकी घड़ी लेनी होगी, तो मुझे आपसे विनति[३] करनी होगी। घड़ी पानेके लिए मैं जो साधन काममें लूंगा, उसके अनुसार वह चोरीका माल, मेरा माल या बख्शिशकी चीज होगी। तीन साधनोंके तीन अलग परिणाम आयेंगे। तब आप कैसे कह सकते हैं कि साधनकी कोई चिन्ता नहीं?

अब चोरको घरमें से निकालनेकी मिसाल लें। मैं आपसे इसमें सहमत नहीं हूँ कि चोरको निकालनेके लिए चाहे जो साधन काममें लिया जा सकता है।

  1. नतीजे।
  2. नतीजा।
  3. आजिज़ी।