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हिन्द स्वराज्य


खीजा हुआ है। अब तो उसने आपका घर दिन-दहाड़े लूटनेका संदेशा आपको भेजा है। आप उसके मुकाबलेके लिए तैयार बैठे हैं। इस बीच लुटेरा आपके आसपासके लोगोंको हैरान करता है। वे आपसे शिकायत करते हैं। आप कहते हैं: “यह सब मैं आप ही के लिए तो करता हूँ। मेरा माल गया उसकी तो कोई बिसात ही नहीं" लोग कहते हैं: “पहले तो वह हमें लूटता नहीं था। आपने जबसे उसके साथ लड़ाई शुरू की है तभीसे उसने यह काम शुरू किया है।" आप दुविधा में फँस जाते हैं। गरीबोंके ऊपर आपको रहम है। उनकी बात सही है। अब क्या किया जाए? क्या लुटेरेको छोड़ दिया जाय? इससे तो आपकी इज़्ज़त चली जाएगी। इज़्ज़त सबको प्यारी होती है। आप गरीबोंसे कहते हैं: ‘‘कोई फिक्र नहीं। आइये, मेरा धन आपका ही है। मैं आपको हथियार देता हूँ। मैं आपको उनका उपयोग सिखाऊंगा। आप उस बदमाशको मारिये, छोड़िये नहीं," यों लड़ाई बढ़ी। लुटेरे बढ़े। लोगोंने खुद होकर मुसीबत मोल ली। चोरसे बदला लेनेका परिणाम यह आया कि नींद बेचकर जागरण मोल लिया। जहाँ शांति थी वहाँ अशांति पैदा हुई। पहले तो जब मौत आती तभी मरते थे। अब तो सदा ही मरने के दिन आये। लोग हिम्मत हारकर पस्तहिम्मत[१] बने। इसमें मैंने बढ़ा-चढ़ाकर कुछ नहीं कहा है, यह आप धीरजसे सोचेंगे तो देख सकेंगे। यह एक साधन हुआ।

अब दूसरे साधन की जाँच करें। चोरको आप अज्ञान[२] मान लेते हैं। कभी मौका मिलने पर उसे समझाने का आपने सोचा है। आप यह भी सोचते हैं कि वह भी हमारे जैसा आदमी है। उसने किस इरादेसे चोरी की, यह आपको क्या मालूम? आपके लिए अच्छा रास्ता तो यही है कि जब मौका मिले तब आप उस आदमीके भीतरसे चोरीका बीज ही निकाल दें। ऐसा आप सोच रहे हैं, इतने में वे भाई साहब फिर से चोरी करने आते हैं। आप नाराज नहीं होते। आपको उस पर दया आती है। आप सोंचते हैं कि यह आदमी रोगी है। आप खिड़की-दरवाजे खुले कर देते हैं। आप अपनी सोने की जगह बदल देते हैं। आप अपनी चीजें झट ले जाई जा सकें इस तरह रख देते हैं। चोर आता है। वह घबराता

  1. नाहिम्मत, कायर।
  2. नासमझ।