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गोला-बारूद


है। यह सब उसे नया ही मालूम होता है। माल तो वह ले जाता है, लेकिन उसका मन चक्करमें पड़ जाता है। वह गाँवमें जाँच-पड़ताल करता है। आपकी दयाके बारेमें उसको मालूम होता है। वह पछताता है और आपसे माफी माँगता है। आपकी चीजें वापस ले आता है। वह चोरीका धंधा छोड़ देता है। आपका सेवक बन जाता है। आप उसे कामधंधेसे लगा देते हैं। यह दूसरा साधन है।

आप देखते हैं कि अलग अलग साधनोंके अलग अलग नतीजे आते हैं। सब चोर ऐसा ही बरताव करेंगे या सबमें आपका-सा दयाभाव होगा, ऐसा मैं इससे साबित नहीं करना चाहता। लेकिन यही दिखाना चाहता हूँ कि अच्छे नतीजे लानेके लिए अच्छे ही साधन चाहिये। और अगर सब नहीं तो ज्यादातर मामलोंमें हथियार-बलसे दयाबल ज्यादा ताकतवर साबित होता है। हथियार में हानि[१] है, दयामें कभी नहीं।

अब अरजीकी बात लें।जिसके पीछे बल नहीं है वह अरजी निकम्मी है, इसमें कोई शक नहीं। फिर भी स्व॰ न्यायमूर्ति रानडे कहते थे कि अरजी लोगोंको तालीम देनेका एक साधन है। उससे लोगोंको अपनी स्थिति[२]का भान कराया जा सकता है और राजकर्ताको[३] चेतावनी दी जा सकती है। यों सोचें तो अरजी निकम्मी चीज है। बराबरीका आदमी अरजी करेगा तो वह उसकी नम्रताकी निशानी मानी जाएगी। गुलाम अरजी करेगा तो वह उसकी गुलामीकी निशानी होगी। जिस अरजीके पीछे बल है वह बराबरी के आदमी की अरजी है; और वह अपनी माँग अरजी के रूप में रखता है, यह उसकी खानदानियतको बताता है।

अरजी के पीछे दो तरह के बल होते हैं: "अगर आप नहीं देंगे तो हम आपको मारेंगे।" यह गोला-बारूद का बल है। इसका बुरा नतीजा हम देख चुके। दूसरा बल यह हैः “अगर आप नहीं देंगे तो हम आपके अरजदार नहीं रहेंगे। हम अरजदार होंगे तो आप बादशाह बने रहेंगे। हम आपके साथ कोई व्यवहार नहीं रखेंगे।" इस बलको चाहे दयाबल कहें, चाहे आत्मबल कहें या सत्याग्रह कहें। यह बल अविनाशी[४] है और इस बल का उपयोग करनेवाला

  1. नुकसान।
  2. हालत।
  3. हाकिम।
  4. लाफ़ानी।