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सत्याग्रह-आत्मबल

पाठक : आप जिस सत्याग्रह या आत्मबलकी बात करते हैं, उसका इतिहासमें कोई प्रमाण[१] है? आज तक दुनियाका एक भी राष्ट्र इस बलसे ऊपर चढ़ा हो, ऐसा देखनेमें नहीं आता। मार-काटके बिना बुरे लोग सीधे रहेंगे ही नहीं, ऐसा विश्वास अभी भी मेरे मनमें बना हुआ है।

संपादक : कवि तुलसीदासजी ने लिखा है :

दया धरमको मूल है, पापमूल[२] अभिमान,

तुलसी दया न छाँड़िये, जब लग घटमें प्रान।

मुझे तो यह वाक्य शास्र-वचन जैसा लगता है। जैसे दो और दो चार ही होते हैं, उतना ही भरोसा मुझे ऊपरके वचन पर है। दयाबल आत्मबल है, सत्याग्रह है। और इस बलके प्रमाण पग पग पर दिखाई देते हैं। अगर यह बल नहीं होता, तो पृथ्वी रसातल(सात पातालोंमें से एक)में पहुँच गई होती।

लेकिन आप तो इतिहासका प्रमाण चाहते हैं। इसके लिए हमें इतिहासका अर्थ जानना होगा।

‘इतिहास'का शब्दार्थ है: ‘ऐसा हो गया।' ऐसा अर्थ करें तो आपको सत्याग्रहके कई प्रमाण दिये जा सकेंगे। ‘इतिहास' जिस अंग्रेजी शब्दका तरजुमा है और जिस शब्दका अर्थ बादशाहों या राजाओंकी तवारीख़ होता है, उसका अर्थ लेनेसे सत्याग्रहका प्रमाण नहीं मिल सकता। जस्तेकी खानमें आप अगर चाँदी ढूँढ़ने जाए, तो वह कैसे मिलेगी? ‘हिस्टरी'में दुनियाके कोलाहलकी ही कहानी मिलेगी। इसलिए गोरे लोगों में कहावत है कि जिस राष्ट्रकी ‘हिस्टरी’ (कोलाहल) नहीं है वह राष्ट्र सुखी है। राजा लोग कैसे खेलते थे, कैसे खून करते थे, कैसे बैर रखते थे, यह सब ‘हिस्टरी'में मिलता है। अगर यही इतिहास होता, अगर इतना ही हुआ होता, तब तो यह दुनिया {

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  1. सबूत।
  2. गांधीजीने 'देहमूल' पाठ लिया है। - अनुवादक