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हिन्द स्वराज्य

पाठक : तब तो आप कानूनके खिलाफ होते हैं! यह बेवफाई कही जायगी। हमारी गिनती हमेशा कानूनको माननेवाली प्रजा में होती है। आप तो ‘एक्स्ट्रीमिस्ट' से भी आगे बढ़ते दीखते हैं । ‘एक्स्ट्रीमिस्ट’ कहता है कि जो कानून बन चुके हैं उन्हें तो मानना ही चाहिये; लेकिन कानून ख़राब हों तो उनके बनानेवालोंको मारकर भगा देना चाहिये।

संपादक : मैं आगे बढ़ता हूँ या पीछे रहता हूँ, इसकी परवाह न आपको होनी चाहिये और न मुझे। हम तो जो अच्छा है उसे खोजना चाहते हैं और उसके मुताबिक बरतना चाहते हैं।

हम कानूनको माननेवाली प्रजा हैं, इसका सही अर्थ तो यह है कि हम सत्याग्रही प्रजा हैं। कानून जब पसन्द न आयें तब हम कानून बनानेवालोंका सिर नहीं तोड़ते, बल्कि उन्हें रद करानेके लिए खुद उपवास करते हैं खुद दुख उठाते हैं।

हमें अच्छे या बुरे कानूनको मानना चाहिये, ऐसा अर्थ तो आजकलका है। पहले ऐसा नहीं था। तब चाहे जिस कानूनको लोग तोड़ते थे और उसकी सजा भोगते थे।

कानून हमें पसन्द न हों तो भी उनके मुताबिक चलना चाहिये, यह सिखावन मर्दानगीके ख़िलाफ है, धर्म के ख़िलाफ है और गुलामीकी हद है।

सरकार तो कहेगी कि हम उसके सामने नंगे होकर नाचें। तो क्या हम नाचेंगे? अगर मैं सत्याग्रही होऊँ तो सरकार से कहूँगा : “यह कानून आप अपने घरमें रखिये। मैं न तो आपके सामने नंगा होनेवाला हूँ और न नाचनेवाला हूँ।” लेकिन हम ऐसे असत्याग्रही हो गये हैं कि सरकारके जुल्म के सामने झुककर नंगे होकर नाचनेसे भी ज्यादा नीच काम करते हैं।

जिस आदमीमें सच्ची इनसानियत है, जो खुदासे ही डरता है, वह और किसीसे नहीं डरेगा। दूसरेके बनाये हुए कानून उसके लिए बंधनकारक नहीं होते। बेचारी सरकार भी नहीं कहती कि 'तुम्हें ऐसा करना ही पड़ेगा।' वह कहती है कि ‘तुम ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हें सजा होगी।' हम अपनी अधम