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सत्याग्रह-आत्मबल

सत्याग्रह ऐसी तलवार है,जिसके दोनों ओर धार है|उसे चाहे जैसे काममें लिया जा सकता है। जो उसे चलाता है और जिस पर वह चलाई जाती है, वे दोनों सुखी होते हैं। वह खून नहीं निकालती, लेकिन उससे भी बड़ा परिणाम ला सकती है। उसको जंग नहीं लग सकती। उसे कोई (चुराकर) ले नहीं जा सकता। अगर सत्याग्रही दूसरे सत्याग्रहीके साथ होड़में उतरता है, तो उसमें उसे थकान लगती ही नहीं। सत्याग्रहीकी तलवारको म्यानकी ज़रूरत नहीं रहती। उसे कोई छीन नहीं सकता। फिर भी सत्याग्रहको आप कमज़ोरोंका हथियार मानें तब तो उसे अँधेर ही कहा जायगा।

पाठक : आपने कहा कि वह हिन्दुस्तानका खास हथियार है। तो क्या हिन्दुस्तानमें तोपके बलका कभी उपयोग नहीं हुआ है?

संपादक : आप हिंदुस्तानका अर्थ मुट्ठीभर राजा करते हैं। मेरे मन तो हिन्दुस्तानका अर्थ वे करोड़ों किसान हैं, जिनके सहारे राजा और हम सब जी रहे हैं।

राजा तो हथियार काममें लायेंगे ही। उनका वह रिवाज ही हो गया है। उन्हें हुक्म चलाना है। लेकिन हुक्म माननेवालेको तोपबलकी ज़रूरत नहीं है। दुनियाके ज्यादातर लोग हुक्म माननेवाले हैं। उन्हें या तो तोपबल या सत्याग्रहका बल सिखाना चाहिये। जहाँ वे तोपबल सीखते हैं वहाँ राजा-प्रजा दोनों पागल जैसे हो जाते हैं। जहाँ हुक्म माननेवालोंने सत्याग्रह करना सीखा है वहाँ राजाका जुल्म उसकी तीन गजकी तलवारसे आगे नहीं जा सकता; और हुक्म माननेवालोंने अन्यायी हुक्मकी परवाह भी नहीं की है। किसान किसीके तलवार-बलके बस न तो कभी हुए हैं, और न होंगे। वे तलवार चलाना नहीं जानते; न किसीकी तलवारसे वे डरते हैं । वे मौतको हमेशा अपना तकिया बनाकर सोनेवाली महान प्रजा हैं। उन्होंने मौतका डर छोड़ दिया है, इसलिए सबका डर छोड़ दिया है। यहाँ मैं कुछ बढ़ा-चढ़ाकर तसवीर खींचता हूँ, यह ठीक है। लेकिन हम जो तलवारके बलसे चकित[१] हो गये हैं, उनके लिए यह कुछ ज्यादा नहीं है।

  1. दंग।