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सत्याग्रह-आत्मबल


पालन तो करना ही चाहिये और हर हालतमें अभय[१] बनना चाहिये।

ब्रह्मचर्य एक महान व्रत है, जिसके बिना मन मजबूत नहीं होता।ब्रह्मचर्यका पालन न करनेसे मनुष्य वीर्यवान नहीं रहता, नामर्द और कमज़ोर हो जाता है। जिसका मन विषयमें[२] भटकता है, वह क्या शेर मारेगा? यह बात अनगिनत मिसालोंसे साबित की जा सकती है। तब सवाल यह उठता है कि घर-संसारीको क्या करना चाहिये। लेकिन ऐसा सवाल उठनेकी कोई ज़रूरत नहीं। घर-संसारीने जो संग किया (स्रीकी सोहबत की) वह विषयभोग नहीं है, ऐसा कोई नहीं कहेगा। संतान पैदा करनेके लिए ही अपनी स्रीका संग करनेकी बात कही गयी है। और सत्याग्रहीको संतान पैदा करनेकी इच्छा नहीं होनी चाहिये। इसलिए संसारी होने पर भी वह ब्रह्मचर्यका पालन कर सकता है। यह बात ज्यादा खोलकर लिखनेकी ज़रूरत नहीं। स्रीका क्या विचार है? यह सब कैसे हो सकता है? ऐसे विचार मनमें पैदा होते हैं। फिर भी जिसे महान कार्योमें हिस्सा लेना है, उसे तो ऐसे सवालोंका हल ढूँढ़ना ही होगा।

जैसे ब्रह्मचर्यकी ज़रूरत है वैसे ही गरीबीको अपनानेकी भी ज़रूरत है। पैसेका लोभ और सत्याग्रहका सेवनपालन (दोनों साथ साथ) कभी नहीं चल सकते। लेकिन मेरा मतलब यह नहीं है कि जिसके पास पैसा है वह उसे फेंक दे। फिर भी पैसेके बारेमें लापरवाह रहनेकी ज़रूरत है। सत्याग्रहका सेवन करते हुए अगर पैसा चला जाय, तो चिन्ता नहीं करनी चाहिये।

जो सत्यका सेवन नहीं करता, वह सत्यका बल, सत्यकी ताक़त कैसे दिखा सकेगा? इसलिए सत्यकी तो पूरी-पूरी ज़रूरत रहेगी ही। बड़ेसे बड़ा नुकसान होने पर भी सत्यको नहीं छोड़ा जा सकता। सत्यके लिए कुछ छिपानेको होता ही नहीं। इसलिए सत्याग्रहीके लिए छिपी सेनाकी ज़रूरत नहीं होती। जान बचानेके लिए झूठ बोलना चाहिये या नहीं, ऐसा सवाल यहाँ मनमें नहीं उठाना चाहिये। जिसे झूठका बचाव करना है, वही ऐसे

  1. निडर।
  2. नफ़सानी ख्वाहिश।