पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/१०४

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हिन्दू धर्म
 

सुख भोगता है, और जब पुण्य कर्मों का क्षय हो जाता है, तब वह पुनः नीचे उतरता है और इस पृथ्वी पर अपने कर्मों के अनुसार जन्म ग्रहण करता है। चन्द्रलोक में जीव उस अवस्था को पहुँच जाता है, जिसे हम 'देवता' कहते हैं तथा ईसाई और मुसलमान देवदूत कहते हैं। ये 'देव' कुछ विशिष्ट पदों के नाम हैं। उदाहरणार्थ, इन्द्र-देवताओं का राजा—एक पद का नाम है, सहस्रों मनुष्य उस पद को प्राप्त करते हैं। जब कोई पुण्यशील पुरुष, जिसने सर्वश्रेष्ठ वैदिक कर्मों का अनुष्ठान कर लिया है, मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वह देवताओं का राजा बन जाता है। उस समय तक पुराना इन्द्र नीचे उतरकर मनुष्य बन गया रहता है। जैसे यहाँ राजा बदलते रहते हैं उसी प्रकार देवताओं को भी मरना पड़ता है। स्वर्ग में सभी मरेंगे। मृत्युरहित स्थान एक ब्रह्मलोक ही है, जहाँ न जन्म है और न मृत्यु। इस प्रकार जीव स्वर्ग को जाते हैं तथा जिस समय वहाँ दैत्य लोग उनका पीछा करते हैं, उस समय को छोड़कर शेष समय वे सुखपूर्वक रहते हैं। हमारी पौराणिक कथाओं में ऐसे दैत्यों का वर्णन है, जो कभी कभी देवगणों को सताते हैं। सभी पुराणों में पढ़ते हैं कि ये दैत्य और देव किस प्रकार लडे, दैत्यों ने कभी-कभी देवों पर विजय प्राप्त की, यद्यपि कई बार ऐसा दिखता है कि दैत्यों ने इतने क्रूर कर्म नहीं किय, जितने कि देवों ने। उदाहरणार्थ, सभी पुराणों में देवता स्त्रीलम्पट पाये जाते हैं। इस प्रकार जब उनके पुण्य का फल समाप्त

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