पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
हिन्दू धर्म
 

करोड़ों जीवों में बँट गया है? क्या वह एक ईश्वर करोड़ों जीवों के रूप में दिखाई देता है! तब यह फिर कैसे हुआ? वह अनन्त शक्ति और सत्ता, वह एकमेव विश्वात्मा विभाजित कैसे हो गयी? अनन्त के खण्ड करना असम्भव है। वह विशुद्ध चिदात्मा इस विश्व में कैसे परिणत हो सकता है? यदि वह विश्व में परिणत हो गया है, तब तो वह ईश्वर परिवर्तनशील है। यदि वह परिवर्तनशील है, तो वह प्रकृति का अंश है और जो कुछ भी प्रकृति है और परिवर्तनशील है, वह तो जन्म लेता और मरता है। यदि हमारा ईश्वर परिवर्तनशील है, तो वह एक दिन अवश्य मरेगा—इस बात को ध्यान में रखिये। पुनश्च, ईश्वर का कितना अंश यह विश्व बन गया है? यदि आप कहें 'क्ष' (बीजगणित का अज्ञात-परिमाण) तब तो ईश्वर अब 'ईश्वर ऋण क्ष' है और इसीलिये वह वही ईश्वर नहीं है जैसा कि इस सृष्टि के पूर्व था, क्योंकि उतना ईश्वर यह सृष्टि बन गया है। अतः अद्वैतवादी कहते हैं—"इस विश्व का कोई निरपेक्ष अस्तित्व ही नहीं है, यह सब माया, मिथ्या है। यह सम्पूर्ण विश्व, ये देवगण, देवता, देवदूत और अन्य सब व्यक्ति जन्म लेने वाले और मरने वाले, ये सब असंख्य आत्माएँ जो उन्नत और अवनत होती जाती हैं सभी स्वप्नमय हैं।" 'जीव' नामक कोई वस्तु है ही नहीं। नानात्व कैसे हो सकता है? है केवल एक अद्वितीय अनन्त सत्ता ही। जैसे एक ही सूर्य विभिन्न जलाशयों में प्रतिबिम्बित होकर अनेक भासता है और जल के करोड़ों बुलबुले करोड़ों सूर्य का प्रतिबिम्ब

१०६