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हिन्दू धर्म और उसके चार योग
 

होने ही चाहिये। यह भी स्मरण रखना है कि एक साधन दूसरे साधन का विकसित रूप है और इसी कारण वे एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं। तर्कशक्ति विकसित होकर अपरोक्ष अनुभव बनती है और इसीलिये वह तर्कशक्ति का विरोध नहीं करता वरन् उसे पूर्ण करता है। जिन सत्यों तक बुद्धि नहीं पहुँच पाती वे अपरोक्ष अनुभव से प्रकाशित या प्रकट होते हैं और वे बुद्धि का विरोध नहीं करते। वृद्धावस्था बाल्यावस्था का विरोध नहीं करती, वह तो उसे पूर्ण बनाती है। इसीलिये सदा ध्यान रखिये कि निम्न श्रेणी के साधन को उच्च श्रेणी के साधन मानने का प्रमाद करके भारी विपत्ति में न पड़ जायें। बहुधा स्वाभाविक प्रवृत्ति अपराक्ष अनुभव के नाम से संसार के सामने ला दी जाती है और तब भविष्य वाणी करने की ईश्वरदत्त शक्ति का झूठा दावा किया जाता है। कोई मूर्ख या अर्ध विक्षिप्त यही सोचता है कि उसके मस्तिष्क में होनेवाली गडबडी ही अपरोक्ष अनुभव है और वह चाहता है कि लोग उसका अनुसरण करें। अत्यन्त परस्पर विरोधी तर्कहीन निरर्थक बातें, जिनका उपदेश संसार में दिया गया है, केवल पागलों के विभ्रान्त मस्तिष्क से निकले हुये बुद्धिहीन गपशप मात्र हैं, जिन्हें अपरोक्ष अनुभव के शब्दों का स्वांग देकर प्रचलित करने का प्रयत्न किया जाता है।

सच्चे उपदेश की पहली कसौटी यह है कि वह उपदेश तर्क के विपरीत न हो। आप देख सकते हैं कि इन सभी योगों का

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