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हिन्दू धर्म और उसके चार योग
 

भलाई करूँगा, कृतघ्न निकलेगा और मेरे विरुद्ध चलेगा और इसका मेरे लिये परिणाम तो दुःख ही होगा। ऐसी घटनाएँ मनुष्य को कर्म करने से दूर भगाती हैं। इस दुःख और कष्ट के डर से मानव जाति के कर्मों के बहुत से वंश का और शक्ति का नाश होता है। कर्मयोग सिखाता है केवल कर्म के लिये कर्म करना तथा आसक्ति रहित होकर, किसको सहायता मिलती है और किस लिये कर्म किया जाता है इन सब बातों की ओर ध्यान दिये बिना ही कर्म करना। कर्मयोगी इसीलिये कर्म करता है कि कर्म करना उसका स्वभाव है, इसीलिये कि वह अनुभव करता है कि कर्म करना उसके लिये अच्छी बात है और इसके परे उसका कोई हेतु नहीं है। उसकी अवस्था इस संसार में एक दाता के समान है; वह कुछ. पाने की तो चिन्ता ही नहीं करता। वह जानता है कि मैं दे रहा हूँ और बदले में कुछ मांगता नहीं और इसी के कारण वह दुःख के चंगुल में नहीं पड़ता। दुःख का बन्धन जब कभी प्राप्त होता है तो वह 'आसक्ति' के प्रभाव का ही फल-रूप हुआ करता है।

पुनश्च, भावना-प्रधान प्रकृति के प्रेमी मनुष्य के लिये भक्तियोग है। वहईश्वर पर प्रेम करता है और वह सभी प्रकार के मंत्र, पुष्प, गंध, सुन्दर मन्दिर, मूर्तियाँ आदि पर भरोसा रखता है और उन, सबका उपयोग करता है। क्या आप समझते हैं कि वे गलती कर रहे हैं। आपको एक बात बता देना चाहिये। विशेष कर इस देश में यह स्मरण रखना आपके लिये अन्छा होगा कि संसार की

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