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हिन्दू धर्म की सार्वभौमिकता
 


क्षुद्र भार को वहन करने में सहायता दे।" वैदिक ऋषियों ने यही गाया है। हम उसकी पूजा किस प्रकार करें ? प्रेम द्वारा ही उसकी पूजा की जा सकती है। " उस परम प्रेमास्पद की पूजा उसे ऐहिक तथा पारत्रिक समस्त प्रिय वस्तुओं से भी अधिक प्रिय जानकर करनी चाहिए।"

वेद हमें शुद्ध प्रेम के सम्बन्ध में इसी प्रकार की शिक्षा देते हैं। अब यह देखा जाय कि भगवान् श्रीकृष्ण ने, जिन्हें हिन्दू लोग पृथ्वी पर ईश्वर का पूर्णावतार मानते हैं, इस प्रेम के पूर्ण विकास की साधना के सम्बन्ध में हमें क्या उपदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि मनुष्य को इस संसार में पनपत्र की तरह रहना चाहिये । पनपत्र जैसे पानी में रहकर भी उससे भीगता नहीं, उसी प्रकार मनुष्य को भी संसार में रहना चाहिये-उसका हृदय ईश्वर की ओर लगा रहे और उसके हाथ निर्लिप्त भाव से कर्म करने में लगे रहें।

इहलोक या परलोक में पुरस्कार की प्रत्याशा से ईश्वर से प्रेम करना बुरी बात नहीं, पर केवल प्रेम के लिये ही ईश्वर से प्रेम करना सब से अच्छा है। और उसके निकट यही प्रार्थना करना उचित है-" हे भगवन, मुझे तो न सम्पत्ति चाहिये, न संतति, न विद्या । यदि तेरी इछ' है, तो सहस्रों विपत्तियों को सहन करूँगा। पर हे प्रभो, कैवल इतना ही दो कि मैं फल की आशा छोड़कर

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