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हिन्दू धर्म
 

भाइयो ! हिन्दुओं के धार्मिक विचारों का यही संक्षिप्त विवरण है। हो सकता है कि हिन्दू अपनी सम्पूर्ण योजना के अनुसार कार्यः न कर सका हो, पर यदि कभी कोई सार्वभौमिक धर्म हो सकता है,तो वह ऐसा ही होगा जो देश या काल से मर्यादित न हो; जिस अनन्त भावान् के विषय में वह धर्म उपदेश देता है, उसी के समान वह धर्म भी अनन्त हो; जिसकी ज्योति श्रीकृष्ण के भक्तों पर और ईसा के प्रेमियों पर, सतों पर और पापियों पर भी समान रूप से प्रकाशित होती हो; जो धर्म न तो ब्राह्मणों का हो, न बौद्धों का,न ईसाइयों का और न मुसलमानों का-वरन् इन सभी धर्मों का समष्टि-स्वरूप होते हुए भी जिसमें उन्नति का अनंत पथ खुला रहे; जो अपनी विश्वव्यापकता के भीतर सृष्टि के प्रत्येक मनुष्य को अपने असंख्य बाहुओं द्वारा आलिंगन करते हुये उसके लिये स्थान रखे,चाहे वह मनुष्य हिंसक पशु से किंचित् ही उच्च, अति नीच,निर्दय और जंगली ही क्यों न हो अथवा अपने मस्तिष्क और हृदय के सद्गुणों के कारण मानव समाज से इतना ऊंचा उठ गया हो कि साधारण मनुष्य उसके प्रति भययुक्त आदर के कारण उसकी मानवी प्रकृति में शंका करते हों। वह विश्वधर्म ऐसा धर्म होगा कि उसमें अविश्वासियों पर अत्याचार करने या उनके प्रति असहिष्णुता प्रकट करने की नीति नहीं रहेगी, वह धर्म प्रत्येक स्त्री और पुरुष के ईश्वरीय भाव को स्वीकार करेगा; जिसका सम्पूर्ण बल मनुष्य मात्र को अपनी सच्ची ईश्वरीय प्रकृति के साक्षात्कार करने के लिये सहायता देने में ही केन्द्रित रहेगा।

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