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२. वेदप्रणीत हिन्दू धर्म[१]


यहाँ सब से आधिक तो हमें आत्मा और परमात्मा सम्बन्धी धार्मिक विचारों तथा धर्म के अन्य सब अंगों के विषय में ही विचार करना है। प्रथमतः संहिता को लीजिये। ये स्तोत्रों के संग्रह हैं और मानो ये ही अत्यन्त प्राचीन आर्यसाहित्य—या सचमुच में संसार के ही सब से पुरातन साहित्य हैं। इनसे भी और पुराने साहित्य के कुछ छोटे-मोटे अंश यहाँ-वहाँ भले ही रहे हों, पर उन्हें यथार्थतः ग्रन्थ या साहित्य नहीं कहा जा सकता। संकलित ग्रंथ के रूप में यही संसार में प्राचीनतम हैं और इसी में आर्यों की आदिकालीन भावनाएँ, उनकी आकांक्षाएँ तथा उनकी रीति-नीति के सम्बन्ध में उठानेवाले प्रश्न आदि चित्रित हैं। प्रारम्भ में ही हमें एक बहुत विचित्र विचार मिलता है। इन स्तोत्रों में भिन्न देवों की स्तुतियाँ हैं—उन्हें देव अर्थात् द्युतिमान कहते हैं। ये देव अनेक हैं। उनमे से एक है इन्द्र, दूसरे वरुण, मित्र, पर्जन्य आदि आदि। एक के बाद एक, पौराणिक और रूपक कथाओं के विभिन्न पत्र क्रमश: हमारे सामने आते हैं। उदाहरणार्थ—वज्रधारी इन्द्र मनुष्य-लोक से वर्षा को रोकने वाले सर्प पर वज्र का आघात करते दिखता है। फिर वह अपने वज्र को फेंकता है, सर्प मर जाता है और वर्षा की झड़ी लग जाती

है। लोगों में प्रसन्नता छा जाती है और वे यज्ञ द्वारा इन्द्र की पूजा


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  1. पश्चिम में दिया हुआ एक व्याख्यान।