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हिन्दू धर्म
 

वे इसे हेनोथिजम * नाम से पुकारते हैं। वास्तव में इसे समझने के लिये जाने की आवश्यकता नहीं। इसकी यथार्थ मीमांसा तो उन वेदों में ही है । उसी स्थान से कुछ आगे, जहाँ इन देवताओं का वर्णन है, उनकी बड़ाई की गई है, महिमा गाई गई है, हमें अपनी शंका का समाधान मिलता है। प्रश्न यह उठता है कि हिन्दुओं की पौराणिक कथाएँ अन्य जातियों की इन कथाओं की अपेक्षा इतनी वैशिष्टयपूर्ण तथा विभिन्न क्यों हैं ? बेबिलोनिया या ग्रीस देश की पौराणिक कथा- ओं में हम देखते हैं कि एक देवता आगे बढ़ने का प्रयत्न करता है और एक उच्च अवस्था में पहुँचकर वहीं जम जाता है तथा दूसरे देवता मर जाते हैं । जिहोवा सब से श्रेष्ठ बन जाता है और अन्य सब देव- ताओं को लोग भूल जाते हैं; वही देवाधिदेव के आसन पर विराजमान हो जाता है। उसी तरह यूनानी देवताओं में 'जिउस' नामक देवता प्राधा- न्य लाभ करता है, उत्तरोत्तर अधिकाधिक महिमान्वित होता हुआ अन्त में विश्वविधाता के सिंहासन पर आरूढ़ हो जाता है। अन्य सभी देवता क्षीणप्रभ होकर साधारण देवदूतों की श्रेणी में समाविष्ट हो जाते हैं। इसी घटना की पुनरावृत्ति उत्तर कालीन इतिहास में भी पाई जाती है बौद्ध और जैन लोग भी अपने एक धर्म-प्रचारक को ईश्वर का स्थान देते हैं और अन्य देवताओं को बुद्ध या 'जिन' देव के अधीन मानते हैं। यही प्रणाली समस्त संसार के धर्मेतिहास में प्रचलित है, परन्तु एक ही स्थान पर मानो इसका व्यतिक्रम होते दिखाई देता है।


  • Henotheism-अनेक देवताओं में से एक को सर्वप्रधान मानकर

पूजा करना।

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