पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
वेदप्रणीत हिन्दू धर्म
 

भारत की भूमि पर उत्पन्न हुए अन्य धर्मों का भी वही हाल रहा है जैसा कि बौद्धधर्म का।बौद्ध धर्म कई दृष्टि से महान् धर्म है, बौद्ध धर्म को और वेदान्त को समान समझना भूल है, निरर्थक है; ईसाई धर्म में और मुक्तिफौज ( Salvation Army) में जो अन्तर है, उसे हर एक देख सकता है। बौद्ध धर्म में कई महत्वपूर्ण अच्छी अच्छी बातें हैं, पर ये बातें ऐसे मनुष्यों के पल्ले पड़ गई, जो उसे सुरक्षित रखने में असमर्थ थे। तस्वज्ञानियों के दिये हुये रत्न सर्व साधारण जनसमूह में पड़ गये और उन लोगों ने उन विचारों को ग्रहण कर लिया। उनमें काफी उत्साह, कुछ अपूर्व विचार तथा भूतदया के उच्च भाव भी थे, पर सब कुछ होते हुये भी इन सब बातों को सुरक्षित रखने के लिये एक और ही वस्तु की आवश्यकता हुआ करती है-वह है बुद्धि और विचार । जहाँ कहीं भी तुम देखोगे कि भूतदया का उच्च आदर्श सर्व साधारण जनसमूह के पल्ले पड़ गया है, वहाँ उसका प्रथम परिणाम तो तुम्हें अधःपतन ही दिखाई देगा। इन बातों को सुरक्षित रखने वाली तो विद्या और बुद्धि ही होती है। अस्तु ।

संसार के सामने प्रचारक-धर्म के रूप में सर्व प्रथम बौद्ध धर्म ही आया और उस जमाने की सारी सभ्य जातियों में उसका प्रचार किया गया, पर उस धर्म के लिये कहीं एक बूंद भी खून नहीं गिराया गया। हम इतिहास में देखते हैं कि किस प्रकार चीन देश में बौद्ध प्रचारकों पर अत्याचार किया गया, एक के बाद एक

३९