पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/६१

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हिन्दू धर्म और उसका सामान्य आधार
 

उपदेश दिया और यह वही भूमि है, जहाँ उन्हेंनि अपना विशाल हृदय खोलकर-केवल हिन्दुओं को ही नहीं वरन् मुसलमानों को भी, यहाँ तक कि समस्त संसार को गले लगाने के लिये अपने हाथ फैलाये । यही पर हमारी जाति के महान् तेजस्वी अन्तिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने अपना और अपने कुटुम्बियों तक का खून धर्म की रक्षा के लिये बहा दिया, और जिनके लिये यह खून की नदी बहाई उन लोगों ने भी जब उनका साथ छोड़ दिया, तब वे मर्माहत सिंह के समान, चुपचाप दक्षिण देश में निर्जनवास के लिये चले गये,और अपने देशभाइयों के प्रति एक भी अभिशाप वचन उच्चारित न कर, तनिक भी असन्तोष प्रकट न कर शान्त भाव से इहलोक छोड़कर चले गए।

हे पञ्चनद देशवासी भाइयो ! यहाँ, अपनी इस प्राचीन पवित्र भूमि में, आप लोगों के सामने मैं आचार्य के रूप में नहीं खड़ा हुआ हूँ; क्योंकि तुम्हें शिक्षा देने योग्य ज्ञान मेरे पास बहुत ही थोड़ा है । बल्कि मैं तो पूर्वी प्रान्त से अपने पश्चिमी भाइयों के पास इसीलिये आया हूँ कि उनके साथ मित्र की तरह वार्तालाप करके अपने अनुभव उन्हें बताऊँ और उनके अनुभव से स्वयं लाभ उठाऊँ। मैं यहाँ यह देखने नहीं आया कि हमारे और आपके बीच क्या क्या मतभेद है, वरन् मैं यह खोजने आया हूँ कि आपकी और हमारी मिलनभूमि कौन सी है। मैं यहाँ आया हूँ यह जानने के लिए कि वह कौनसा आधार है जिसके ऊपर हम-

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