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हिन्दू धर्म और उसका सामान्य आधार
 

उसकी तीव्र आलोचना कर देते थे। अतीत कालीन इन महा- पुरुषों की जय हो– उन्होंने देश का बहुत ही कल्याण किया है, पर आज हमें एक महावाणी सुनाई दे रही है, "बस करो, बस करो, निन्दा पर्याप्त हो चुकी, दोष-दर्शन बहुत हो चुका, अब तो समय पुनर्निमाण का, फिर से संगठन करने का, आ गया है। अब समय आ गया है अपनी समस्त बिखरी हुई शक्तियों को एकत्र करने का, उन सबको एक ही केन्द्र में केन्द्रित करने का और उस सम्मिलित शक्ति द्वारा देश को प्रायः सदियों से रुकी हुई उन्नति के मार्ग में अग्रसर करने का। घर की सफाई हो चुकी है। अब आवश्य- कता है उसे नये सिरे से आबाद करने की । रास्ता साफ कर दिया गया है । आर्य सन्तानों ! अब आगे बढ़ो ।"

सज्जनो ! इसी उद्देश से प्रेरित होकर मैं आपके सामने आया हूँ और आरम्भ में ही प्रकट कर देना चाहता हूँ कि मैं किसी दल या विशिष्ट सम्प्रदाय का नहीं हूँ। सभी दल और सभी सम्प्रदाय मेरे लिये महान् और महिमामय हैं । मैं उन सबसे प्रेम करता हूँ और अपने जीवन भर मैं यही ढूंढ़ने का प्रयत्न करता रहा कि उनमें, कौन कौन सी बातें अच्छी और सच्ची हैं। इसीलिये आज मैंने संकल्प किया है कि आप लोगों के सामने उन बातों को पेश करूँ, जिनमें हम एकमत हैं, जिससे कि हमें एकता को सम्मिलन-भूमि प्राप्त हो जाय और यदि ईश्वर की दया से यह सम्भव हो तो हम उसके सहारे शीघ्र ही उस आदर्श को कार्यरूप में परिणत

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