पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/६९

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हिन्दू धर्म और उसका सामान्य आधार
 

हुआ, जो अधिक विशाल, तथा कई गुनी श्रेष्ठ और परमानंदपूर्ण थी।इसी मार्ग से एकनिष्ठ भाव से वे अग्रसर हुए, यहाँ तक कि आज यही हमारा जातीय विशेषत्व बन गया है; यहाँ तक कि हजारों वर्ष से यही, लगातार, पिता से पुत्र को उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त होता हुआ अब हमारे जातीय जीवन का एक अंग हो गया है;यहाँ तक कि हमारी नसों में दौड़ने वाले रक्त के प्रत्येक बिन्दु में वह भिद गया है और वही मानो हमारा स्वभाव बन गया है, कहाँ तक कहें, 'धर्म' और 'हिन्दू' दोनों नाम का अर्थ ही एक हो गया है।यही हमारी जाति का वैशिष्टय है और इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता । जंगली असभ्य जातियों ने यहाँ आकर तलवार और अग्नि का प्रयोग किया, अपने जंगली असभ्य धर्मों का भी प्रचार किया, पर इनमें से एक भी हमारे हृदय को स्पर्श तक नहीं कर सका; उस सर्प की फन की उस मणि'को नहीं सका, उस जातीय जीवन के 'हीरामन तोते।को मार नहीं सका । अतएव यही हमारी जाति की जीवनी शक्ति है और जब तक यह अव्याहत है, तब तक संसार में किसी की ताकत नहीं कि वह इस जाति का विनाश कर सके। जब तक हम अपने इस अत्यन्त अमूल्य पैतृकधन आध्यास्मिकता को नहीं छोड़ेंगे,तब तक संसार के सभी अत्याचार-उत्पीड़न और दुःख हमें बिना चोट पहुँचाये ही, दूर हो जाएंगे और हम लोग प्रह्लाद के समान अग्नि की ज्वालाओं में से भी, बिना जले बाहर निकल आएंगे। अगर

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