(Expired) हैं-ईश्वर-निःश्वसित हैं, मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के हृदयों से निकले हैं।
यह एक बहुत आवश्यक और अच्छी तरह समझ रखने की बात है। प्यारे भाइयो ! मैं आप लोगों से यह बताये देता हूँ कि यही बात भविष्य में हमें फिर बार बार बतलानी और समझानी पड़ेगी।कारण, मेरा दृढ़ विश्वास है, और मैं आप लोगों से भी यह बात अग्छी तरह समझ लेने को कहता हूँ कि जो व्यक्ति दिन-रात अपने को दीन, हीन या अयोग्य समझ हुए बैठा रहेगा, उसके द्वारा कुछ भी नहीं हो सकता; वास्तव में दिन-दिन वह अपनी उसी कलि्पत अवस्था को प्राप्त होता जायगा । अगर आप समझें कि हमारे अन्दर शक्ति है, तो आप ही में से शक्ति जाग उठेगी। और, अगर आप सोचें कि हम कुछ नहीं हैं-दिन-रात यही सोचा करें, तो आप सचमुच ही 'कुछ नहीं हो जायेंगे। आप लोगों को तो यह महान् ताव सदा स्मरण रखना चाहिये कि हम उसी सर्वशक्तिमान परमपिता की सन्तान हैं, हम उसी ब्रह्माग्नि की चिनगारियाँ हैं-भला हम 'कुछ नहीं क्योंकर हो सकते हैं? हम सब कुछ कर सकते हैं, हमें सब कुछ करना ही होगा-हमारे पूर्व-पुरुषों में ऐसा ही दृढ़ आत्म-विश्वास था। इसी आत्म-विश्वास-रूपी प्रेरणा-शाकि ने उन्हें सभ्यता की ऊँची-से-ऊँची सीढ़ी पर चढ़ाया था। और अब यदि हमारी अवनति हुई हो, तो आपसे सच कहता हूँ, जिस दिन हमारे पूर्वजों ने अपना यह आत्म-विश्वास गंँवाया होगा, उसी दिन से