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हिन्दू धर्म
 

दात्री मूल हिन्दू धर्म की विराट काया द्वारा मानो शोषित होकर पचा लिये गये-उसी में समाविष्ट हो गये।

आधुनिक विज्ञान के अत्यन्त नवीन आविष्कार जिसके केवल प्रतिध्वनि मात्र हैं, उस वेदान्त के अत्युच्च आध्यात्मिक भाव से लेकर सामान्य मूर्तिपूजा एवं तदानुषंगिक अनेकानेक पौराणिक दन्तकथाओं तक के लिये, और इतना ही नहीं बल्कि बौद्धों के अज्ञेयवाद तथा जैनों के निरीश्वरवाद-सभी के लिये, प्रत्येक के लिये-हिन्दू धर्म में स्थान है।

तब तो प्रश्न यही उठता है कि वह कौनसा एक बिंदु है, जहाँ पर इतनी विभिन्न दिशाओं में जानेवाली त्रिज्या रेखाएँ केन्द्रस्थ होती हैं ? वह कौनसा एक सामान्य आधार है, जिस पर ये इतने परस्पर विरोधी भासनेवाले सब भाव आश्रित हैं ? मैं इसी प्रश्न का उत्तर देने का अब प्रयत्न करूँगा।

हिन्दू जाति ने अपना धर्म आप्तवाक्य वेदों से प्राप्त किया है। उनकी धारणा है कि वेद अनादि और अनंत हैं। श्रोताओं को, सम्भव है, यह हास्यास्पद मालूम हो और वे सोचें कि कोई पुस्तक अनादि और अनंत कैसे हो सकती है, परन्तु वेद का

अभिप्राय किसी पुस्तकविशेष से नहीं है। वेद का अर्थ है भिन्न भिन्न कालों में भिन्न भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक तत्वों का संचित कोष । जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त मनुष्यों