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हिन्दू धर्म
 


उसी तरह गड्ढे में जा गिरोगे, जिस तरह अन्धा अन्धे को ले जाय और दोनों गढ्ढे में जा गिरें। अतएव किसी दूसरे के साथ विवाद करने से पहले जरा सोच-समझ लेना, तब आगे बढ़ना। सब को अपनी-अपनी राह से चलने दो--'प्रत्यक्ष अनुभूति' की ओर अग्रसर होने दो। सभी अपने-अपने हृदय में उस सत्य-स्वरूप आत्मा के दर्शन करें। जब हम उस भूमा के, अनावृत सत्य-स्वरूप के दर्शन कर पायेंगे, तभी उससे प्राप्त होने वाले अपूर्व आनन्द का अनुभव कर सकेंगे। भारत के उन सब सत्यदर्शी प्राचीन ऋषियों ने एक स्वर से जिनकी बात कही है, हम भी उन्हीं के दर्शन पायेंगे। फिर उस समय हमारे हृदयों से आप ही आप केवल प्रेमपूर्ण वाणी निकलेगी। कारण, जो साक्षात् प्रेम-स्वरूप हैं, वे ही हमारे हृदय में अधिष्ठित रहेंगे। बस उसी समय हमारे सारे साम्प्रदायिक भेद-भाव दूर हो जायेंगे--तभी हम अपने को 'हिन्दू' कहने के अधिकारी होंगे--तभी हम प्रत्येक हिन्दू-नामधारी व्यक्ति के सच्चे स्वरूप को समझकर तथा उसे हृदय में धारण करते हुए उससे गहरा प्रेम कर सकेंगे।

मेरी बात पर विश्वास करो, केवल तभी तुम वास्तव में हिन्दू कहलाने योग्य होगे जब 'हिन्दू' शब्द को सुनते ही तुम्हारे अन्दर बिजली दौड़ने लग जायगी। केवल तभी तुम अपने को सच्चा हिन्दू कह सकोगे, जब तुम किसी प्रान्त या कोई भी भाषा बोलने वाले हिन्दू संज्ञक व्यक्ति को एकदम अपना सगा समझोगे। केवल तभी तुम अपने को सच्चा हिन्दू मान सकोगे, जब किसी भी हिन्दू कहलाने

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