पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/८४

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हिन्दू धर्म
 

चेष्टा किया करें। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति यदि तुम्हारे ऊपर अभिशाप और निन्दा की बौछार करे, तो भी तुम इनके प्रति प्रेम-पूर्ण वाणी का ही प्रयोग करो। यदि ये तुम्हें त्याग दें, पैरों से ठुकरा दें, तो तुम उसी वीर-केशरी गोविन्दसिंह की तरह समाज से दूर जाकर नीरव भाव से मौत की राह देखो। जो ऐसा कर सकता है, वही सच्चा हिन्दू कहलाने का अधिकारी है। हमें अपने सामने सदा इसी प्रकार का आदर्श उपस्थित रखना होगा। पारस्परिक विरोध-भाव को भूलकर चारों ओर प्रेम का प्रवाह बहाना होगा।

लोग 'भारतोद्धार' के लिये जो जी में आये कहें; मैंने जीवन भर काम किया है, कम से कम काम करने की चेष्टा की है; मेरा यही अनुभव है कि जब तक तुम सच्चे धार्मिक नहीं होते, तब तक भारत का उद्धार होना असम्भव है। केवल भारत ही नहीं सारे संसार का कल्याण इसी पर निर्भर है। कारण, मैं तुम्हें साफ-साफ बता देता हूँ कि इस समय पाश्चात्य सभ्यता अपनी नींव तक हिल गई है। जड़वाद की कच्ची रेतीली नींव पर खड़ी होनेवाली बड़ी-से-बड़ी इमारतें भी एक-न-एक दिन अवश्य ही नीचे आ रहेंगी। इस विषय में संसार का इतिहास ही सब से बड़ा साक्षी है। कितनी जातियों ने जड़वाद की नींव पर अपने गौरव का प्रासाद खड़ा कर एक दूसरोंकी अपेक्षा अपना सिर ऊपर उठाया था और संसार के आगे यह घोषणा की थी कि जड़ के सिवाय मनुष्य और कुछ नहीं है। जरा गौर से देखिये। पाश्चात्य भाषा में मौत के लिये

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